श्री कृष्ण स्मृति भाग 4

 "भगवान श्रीआपको श्रीकृष्ण पर बोलने की प्रेरणा कैसे व क्यों हुईइस लंबी चर्चा का मूल आधार क्या है?'


सोचना होबोलना होसमझना होतो कृष्ण से ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति खोजना मुश्किल है। ऐसा नहीं कि और महत्वपूर्ण व्यक्ति हुए हैंलेकिन कृष्ण का महत्व अतीत के लिए कम और भविष्य के लिए ज्यादा है। सच ऐसा है कि कृष्ण अपने समय के कम से कम पांच हजार वर्ष पहले पैदा हुए। सभी महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के पहले पैदा होते हैंऔर सभी गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बाद पैदा होते हैं। बस महत्वपूर्ण और गैर-महत्वपूर्ण व्यक्ति में इतना ही फर्क है। और सभी साधारण व्यक्ति अपने समय के साथ पैदा होते हैं।

महत्वपूर्ण व्यक्ति अपने समय के बहुत पहले पैदा हो जाता है। और कृष्ण तो अपने समय के बहुत पहले पैदा हुए हैं। शायद आनेवाले भविष्य में हम कृष्ण को समझने में योग्य हो सकेंगे। अतीत कृष्ण को समझने में योग्य नहीं हो सका।
और यह भी खयाल कर लें कि जिसे हम समझने में योग्य नहीं हो पातेउसकी हम पूजा करना शुरू कर देते हैं। जो हमारी समझ के बाहर छूट जाता हैउसकी हम पूजा करने लगते हैं। या तो हम गाली देते हैंया प्रशंसा करते हैंदोनों ही पूजाएं हैं--एक शत्रु की हैएक मित्र की है। जिसे हम नहीं समझ पातेउसे हम भगवान बना लेते हैं। असल में अपनी नासमझी को स्वीकार करना बहुत कठिन होता है। दूसरे को भगवान बना देना बहुत आसान होता है। लेकिन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
जिसे हम नहीं समझ पाते उसे हम क्या कहें--उसे हम भगवान कहना शुरू कर देते हैं। भगवान कहने का मतलब है कि जैसे हम भगवान को नहीं समझ पा रहे हैं वैसे ही इस व्यक्ति को भी नहीं समझ पा रहे हैं। जैसा भगवान बेबूझ हैवैसा ही यह व्यक्ति भी अबूझ है। जैसे भगवान रहस्य हैवैसा ही यह व्यक्ति भी रहस्य है। जैसे भगवान को हम नहीं छू पातेपकड़ नहीं पातेस्पर्श नहीं कर पातेवैसे ही इस व्यक्ति को भी नहीं छू पातेनहीं पकड़ पाते। जैसे भगवान सदा ही जानने को शेष रह जाता है वैसा ही यह व्यक्ति भी सदा जानने को शेष रह जाता है।
समय के पहले जो लोग पैदा हो जाते हैंउनकी पूजा शुरू हो जाती है। लेकिन अब वह वक्त करीब आ रहा है जब कृष्ण की पूजा से अर्थ नहीं होगाकृष्ण को जीना शुरू हो सकेगाकृष्ण को जिया जा सकेगा। ठीक इसीलिए कृष्ण को चुना चर्चा के लिएक्योंकि आने वाले भविष्य के संदर्भ में सबसे सार्थक व्यक्तित्व उन्हीं का मुझे मालूम पड़ता है। तो दोत्तीन बातें इस संबंध में आपसे कहूं।
एक बातकृष्ण को छोड़कर दुनिया के समस्त अदभुत व्यक्ति--चाहे महावीरचाहे बुद्धचाहे क्राइस्टया कोई और--ये सभी परलोक के लिए जी रहे थे। आने वाले किसी जीवन के लिएआने वाले किसी लोक के लिएपरलोक के लिएमोक्ष के लिएस्वर्ग के लिए। मनुष्य का पूरा अतीत पृथ्वी पर इतना दुखद था कि पृथ्वी पर तो जीना ही संभव नहीं था। मनुष्य का पूरा अतीत इतनी पीड़ाओंइतनी "सफरिंग', इतनी कठिनाइयों का था कि इस पृथ्वी के जीवन को स्वीकार करना मुश्किल था। तो अतीत के समस्त धर्म पृथ्वी को अस्वीकार करने वाले धर्म हैंसिर्फ एक कृष्ण को छोड़कर। कृष्ण इस पृथ्वी के पूरे जीवन को पूरा ही स्वीकार करते हैं। वे किसी परलोक में जीने वाले व्यक्ति नहींइसी पृथ्वी परइसी लोक में जीने वाले व्यक्ति हैं। बुद्धमहावीर का मोक्ष इस पृथ्वी के पार कहीं दूर हैकृष्ण का मोक्ष इसी पृथ्वी परयहीं और अभी है।
इस जीवन कीजिसे हम जानते हैंइस जीवन की इतनी गहरी स्वीकृति किसी व्यक्ति ने कभी भी नहीं दी है। आने वाले भविष्य में पृथ्वी पर दुख कम हो जाएंगेसुख बढ़ जाएंगे और पहली बार पृथ्वी पर त्यागवादी व्यक्तियों की स्वीकृति मुश्किल हो जाएगी। दुखी समाज त्याग को स्वीकार कर सकता हैसुखी समाज त्याग को स्वीकार नहीं कर सकता। दुखी समाज में त्यागसंन्यास, "रिनंसिएशन'; क्योंकि दुखी समाज में कोई कह सकता हैसिवाय दुख के जीवन में क्या हैहम छोड़कर जाते हैं। सुखी समाज में यह नहीं कहा जा सकता कि जीवन में सिवाय दुख के क्या है। अर्थहीन हो जाएगी यह बात।
इसलिए त्यागवादी धर्म की कोई बात भविष्य के लिए सार्थक नहीं हैविज्ञान उन सारे दुखों को अलग कर देगा जो जिंदगी में दुख मालूम पड़ते थे। बुद्ध ने कहा हैजन्म दुख हैजीवन दुख हैजरा दुख हैमृत्यु दुख हैये सब दुख हैं। दुख अब मिटाए जा सकेंगे। जन्म दुख नहीं होगा--न मां के लिएन बेटे के लिए। जीवन दुख नहीं होगाबीमारियां काटी जा सकेंगी। जरा नहीं होंगी और बुढ़ापे से आदमी को जल्दी ही बचा लिया जा सकेगा और जीवन को भी लंबा किया जा सकता है। इतना लंबा किया जा सकता है कि अब विचारणीय यह नहीं होगा कि आदमी क्यों मर जाता हैविचारणीय यह होगा कि आदमी इतना लंबा क्यों जीयेयह बहुत निकट भविष्य में सब हो जाने वाला है। उस दिन बुद्ध का वचन--जन्म दुख हैजरा दुख हैजीवन दुख हैमृत्यु दुख हैबहुत समझना मुश्किल हो जाएगा। उस दिन कृष्ण की बांसुरी सार्थक हो सकेगी। उस दिन कृष्ण का गीत और कृष्ण का नृत्य सार्थक हो सकेगा। उस दिन जीवन सुख हैयह चारों ओर नाच उठेगी घटना। जीवन सुख हैइसके फूल चारों ओर खिल जाएंगे। इन फूलों के बीच में नग्न खड़े हुए महावीर का संदर्भ खो जाता है। इन फूलों के बीच में जीवन के प्रति पीठ करके जानेवाले व्यक्तित्व का अर्थ खो जाता है। इन फूलों के बीच में तो जो नाच सकेगा वही सार्थक हो सकता है। भविष्य में दुख कम होता जाएगा और सुख बढ़ता जाएगाइसलिए मैं सोचता हूं कि कृष्ण की उपयोगिता रोज-रोज बढ़ती जानेवाली है।
अभी तक हम सोच नहीं सकते कि धार्मिक आदमी के ओठों पर बांसुरी कैसे है। अभी तक हम सोच ही नहीं सकते हैं कि धार्मिक आदमी और मोर का पंख लगाकर नाच कैसे रहा है। धार्मिक आदमी प्रेम कैसे कर सकता हैगीत कैसे गा सकता है। धार्मिक आदमी का हमारे मन में खयाल ही यह है कि जो जीवन को छोड़ रहा हैत्याग रहा हैउसके ओंठों से गीत नहीं उठ सकतेउसके ओंठ से दुख की आह उठ सकती है। उसके ओंठों पर बांसुरी नहीं हो सकती है। यह असंभव है। इसलिए कृष्ण को समझना अतीत को बहुत ही असंभव हुआ। कृष्ण को समझा नहीं जा सका। इसलिए कृष्ण बहुत ही बेमानीअतीत के संदर्भ में बहुत "एब्सर्ड', असंगत थे। भविष्य के संदर्भ में कृष्ण रोज संगत होते चले जाएंगे। और ऐसा धर्म पृथ्वी पर अब शीघ्र ही पैदा हो जाएगा जो नाच सकता हैगा सकता हैखुश हो सकता है। अतीत का समस्त धर्म रोता हुआउदासहारा हुआथका हुआपलायनवादी, "एस्केपिस्टहै। भविष्य का धर्म जीवन कोजीवन के रस को स्वीकार करने वालाआनंद सेअनुग्रह से नाचने वालाहंसने वाला धर्म होने वाला है।
जीवन की यह जो संभावना है--जीवन की यह जो भविष्य की संभावना हैइस भविष्य की संभावनाओं को खयाल में रखकर कृष्ण पर बात करने का मैंने विचार किया है। हमें भी समझना मुश्किल पड़ेगाक्योंकि हम भी अतीत के दुख के संस्कारों से ही भरे हुए हैं। और धर्म को हम भी आंसुओं से जोड़ते हैंबांसुरियों से नहीं। शायद ही हमने कभी ऐसा आदमी देखा हो जो कि इसलिए संन्यासी हो गया हो कि जीवन में बहुत आनंद है। हांकिसी की पत्नी मर गई है और जीवन दुख हो गया है और वह संन्यासी हो गया। किसी का धन खो गया हैदिवालिया हो गया हैआंखें आंसुओं से भर गई हैं और वह संन्यासी हो गया। कोई उदास हैदुखी हैपीड़ित हैऔर संन्यासी हो गया है। दुख से संन्यास निकला है। लेकिन आनंद सेआनंद से संन्यास नहीं निकला। कृष्ण  मेरे लिए एक ही व्यक्ति हैं जो आनंद से संन्यासी हैं।
निश्चित ही आनंद से जो संन्यासी है वह दुख वाले संन्यासी से आमूल रूप से भिन्न होगा। जैसे मैं कह रहा हूं कि भविष्य का धर्म आनंद का होगावैसे ही मैं यह भी कहता हूं कि भविष्य का संन्यासी आनंद से संन्यासी होगा। इसलिए नहीं कि एक परिवार दुख दे रहा था इसलिए एक व्यक्ति छोड़कर संन्यासी हो गयाबल्कि एक परिवार उसके आनंद के लिए बहुत छोटा पड़ता था। पूरी पृथ्वी को परिवार बनाने के लिए संन्यासी हो गया। इसलिए नहीं कि एक प्रेम जीवन में बंधन बन गया थाइसलिए कोई प्रेम को छोड़कर संन्यासी हो गयाबल्कि इसलिए कि एक प्रेम इतने आनंद के लिए बहुत छोटा थासारी पृथ्वी का प्रेम जरूरी थाइसलिए कोई संन्यासी हो गया। जीवन की स्वीकृति और जीवन के आनंद और जीवन के रस से निकले हुए संन्यास को जो समझ पाएगावह कृष्ण को भी समझ पा सकता है।
नहींभविष्य में अगर कोई कहेगा कि मैं दुख के कारण संन्यासी हो गया तो हम कहेंगे कि दुख से कोई संन्यासी कैसे हो सकता है। और दुख से जो संन्यास निकलेगा वह आनंद में ले जाने वाला नहीं होगा। दुख से जो संन्यास निकलेगा वह ज्यादा-से-ज्यादा उदासी में ले जा सकता हैआनंद में नहीं ले जा सकता। क्योंकि दुख से जो संन्यास निकलेगा वह दुख को कम ही कर सकता है ज्यादा-से-ज्यादाआनंद को पैदा नहीं कर सकता। दुख की स्थितियों को छोड़कर आप दुख को कम कर लेंगेलेकिन आनंद को उपलब्ध नहीं हो सकते। आनंद से जिस संन्यास का जन्म होगाजो गंगा आनंद से पैदा होगीवही आनंद के सागर तक पहुंच सकती है। क्योंकि तब आनंद को बढ़ाना ही साधना होगी। अतीत की साधना दुख को कम करने की साधना थी। और दुख को कम करने वाला साधक दुख को कम कर लेगालेकिन यह "निगेटिव', नकारात्मक होगाज्यादा-से-ज्यादा उपलब्धि उसकी उदासी की होगीजो दुख का क्षीणतम रूप है। इसलिए संन्यासी हमारा उदासहारा हुआभागा हुआ हैजीता हुआजीवंतआनंद से नाचता हुआ संन्यासी नहीं है।
कृष्ण मेरे लिए आनंद के संन्यासी हैं। आनंद के संन्यास की संभावना के कारण जानकर ही मैंने चुना कि उन पर बात करूं। ऐसा नहीं है कि कृष्ण पर बातें नहीं की गईं। लेकिन कृष्ण पर जिन्होंने बातें की हैं वे भी दुख से भरे हुए संन्यासी थे। इसलिए कृष्ण की आज तक की व्याख्या कृष्ण के साथ अन्याय करती रही है। करेगी ही।  कृष्ण की व्याख्या अतीत में संगत हो ही नहीं सकी। क्योंकि जो व्याख्याकार थेजो कृष्ण पर कह रहे थेबोल रहे थेवे सब दुख से आए हुए थे। वे इस जगत को माया सिद्ध करना चाहते थेवे इस जगत को दिव्य कह रहे हैं। इसलिए कृष्ण के लिए सब स्वीकार है। अस्वीकार है ही नहीं। "टोटल एक्सेप्टबिलिटीकासमस्त को स्वीकार लेने का ऐसा व्यक्तित्व कभी पैदा ही नहीं हुआ है।
धीरे-धीरे रोज जब हम बात करेंगे तो बहुत-सी बातें खयाल में आ सकेंगी। लेकिन मेरे लिए कृष्ण शब्द भविष्य के लिए इंगित और बहुत सूचक है। इसलिए इस पर बात करने को तय किया है।

ओशो रजनीश



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