श्री कृष्ण स्मृति भाग 12

 "भगवान श्री, क्राइस्ट का हिसाब रखा जा सका, वह १९७० साल पहले हुए, तो क्या कृष्ण का हिसाब नहीं रखा जा सकता?'

( यह प्रवचन माला 1970 में दी गरीब हैं। )


रखा जा सकता था। आसपास जो लोग थे उन पर निर्भर करती है यह बात। जीसस के आसपास जो लोग थे, उन पर निर्भर हुआ। जीसस ने नहीं रखा है हिसाब। क्योंकि जीसस के अगर वचन देखो तो समझोगे। जीसस का एक वचन है--अब्राहम एक पैगंबर हुआ, जीसस के सैकड़ों वर्ष पहले--जीसस से किसी ने पूछा कि अब्राहम तो आपके पहले हुए, तो जीसस ने कहा, "नो, बिफोर अब्राहम वाज़, आइ वाज़'। इसके पहले कि अब्राहम था, मैं था। इसका क्या मतलब हुआ? जीसस ने तो "टाइम' तोड़ दिया, जीसस ने तो समय तोड़ दिया। अब्राहम तो सैकड़ों-हजारों साल पहले हुआ। लेकिन जीसस कहता है, अब्राहम होने के पहले मैं था। लेकिन जो लोग थे, उनके पास समय की एक धारणा थी; उन्होंने कोई सागर नहीं देखा था, उन्होंने कुएं देखे थे। उनको यह बात बड़ी "मिस्टीरियस' लगी और उन्होंने कहा, ठीक है, कहते हैं, कुछ रहस्य की बात होगी, लेकिन वे समझे नहीं कि वह समय की धारणा तोड़ने की बात है।

जीसस को कोई पूछता है कि तुम्हारे प्रभु के राज्य में खास बात क्या होगी? तो जीसस कहते हैं, "देअर शैल बी टाइम नो लांगर'। एक खास बात होगी कि वहां समय नहीं होगा। लेकिन जो लोग आसपास थे। रेकॉर्ड जीसस थोड़े ही इकट्ठा करते हैं; रेकॉर्ड कृष्ण थोड़े ही रखते हैं, रेकॉर्ड आसपास के लोग रखते हैं। कृष्ण के आसपास जो लोग थे वैसे लोग जीसस को नहीं मिले। इस मामले में, इस जमीन पर जो लोग पैदा हुए उनका सौभाग्य बहुत और है। कृष्ण के आसपास जो लोग थे वैसे लोग जीसस को नहीं मिले। जीसस के आसपास क, ख, ग, की कक्षा के लोग थे। इसलिए तो उन्होंने उनको सूली पर लटका दिया, क्योंकि वह आदमी इतना बेबूझ हो गया कि सिवाय मारने के कोई उपाय न रहा। हम कृष्ण को, महावीर को या बुद्ध को सूली नहीं दिए, इसका कारण यह नहीं है कि जीसस से कुछ कम खतरनाक लोग थे ये, इसका कुल कारण इतना ही है कि हम, एक लंबी यात्रा है इस देश की जिसमें हमने बहुत खतरनाक लोगों को सहा है। जिनमें हमने बहुत खतरनाक लोग देखे, जिनमें हमने बहुत अलौकिक, अदभुत आदमी देखे। हम धीरे-धीरे राजी हो गए और हमारे पास कुछ समझ पैदा हो गई, जिसका हम उपयोग कर सके। इसका उपयोग जीसस के वक्त में नहीं हो सका। इसका उपयोग मुहम्मद के वक्त में नहीं हो सका। मुहम्मद के पास वे लोग न थे जो महावीर के पास थे। जीसस के पास वे लोग न थे जो कृष्ण के पास थे। इसलिए फर्क पड़ा। इसलिए ही फर्क पड़ा, और कोई कारण नहीं है।

यह समझ लेना चाहिए ठीक से कि न तो कृष्ण ने कुछ लिखा है, न क्राइस्ट ने लिखा है, जिन्होंने सुना है उन्होंने लिखा है।

क्राइस्ट एक गांव में ठहरे हुए हैं। भीड़ लगी है लोगों की उन्हें देखने, और तभी भीड़ में आवाज आती है कि रास्ता दो। जीसस की मां मिलने आ रही है। तो क्राइस्ट हंसते हैं, और वह कहते हैं कि मेरी कैसी मां! क्योंकि मैं पैदा कब हुआ! लेकिन रेकॉर्ड रखने वालों ने तारीख तय रखी। उन्होंने लिख लिया कि वह कब पैदा हुए। अब यह आदमी कहता है, कैसी मेरी मां, कौन मेरी मां? मैं कब पैदा हुआ? मैं सदा से हूं। रेकॉर्ड लिखने वालों ने यह भी लिख दिया कि उन्होंने ऐसा कहा और यह भी लिख दिया कि वह कब पैदा हुए।

कृष्ण को जो रेकॉर्ड लिखने वाले लोग मिले, वह ज्यादा समझदार थे। उन्होंने कहा, जो आदमी कहता है मैं सदा से हूं; जो अर्जुन से कहता है कि यह मैं तुम को ही नहीं समझा रहा, इसके पहले मैंने फलाने को समझाया था, इसके और पहले मैंने फलाने को समझाया था; और ऐसा नहीं है कि तुम को समझा कर ही सब चुक जाएगा, मैं आता रहूंगा और समझाता रहूंगा; और यह जो सामने लोग खड़े हैं, तुम सोचते हो मर जाएंगे तो तुम पागल हो, नासमझ हो, यह पहले भी हुए और मर गए हैं, और उसके पहले भी हुए थे, अभी मरेंगे और फिर होते रहेंगे; इस आदमी की जन्म-तिथि लिखना ठीक न थी, अन्यायपूर्ण था। नहीं लिखी गई।

इतिहास खोज करेगा तो मुश्किल में पड़ेगा। क्योंकि हमने जानकर रेकॉर्ड गंवाए। हमने सब उपाय किए हैं कि रेकॉर्ड बचाए न जा सकें। हमने सब उपाय किए हैं कि तिथि का कोई पता ही न रहे। उपनिषद किसने लिखे, वेद किसने लिखे, लेखक का नाम जानकर गंवाया गया है। क्योंकि वह जो कह रहा था, वह कह रहा यह मैं नहीं कह रहा हूं, यह परमात्मा बोल रहा है, कोई जरूरत नहीं है, मुझे छोड़ा जा सकता है। मेरे बिना काम चल सकता है। पश्चिम में रेकॉर्ड रखे हैं। जीसस जगह-जगह कहते हैं, यह मैं नहीं बोल रहा हूं, वह परम पिता जो आकाश में है वही बोल रहा है। "नाट आई, बट माई फादर स्पीक्स'। लेकिन लिखने वाला तो लिखेगा कि जीसस के वचन हैं।

इस वजह से यह कोई कमी नहीं है इस देश की कि इस देश के पास कोई "हिस्टॉरिक सेन्स' नहीं है। ऐसा नहीं है कि इतिहास का कोई बोध नहीं है हमारे पास। लेकिन इतिहास के बोध को हमने जानकर झुठलाया है, क्योंकि हमारे पास इतिहास के कुएं से भी बड़ा एक बोध है, "इटर्निटी' का, शाश्वतता का बोध है। हमें घटनाओं का उतना मूल्य नहीं है जितना घटनाओं के भीतर छिपी हुई आत्मा का मूल्य है। हमने इस बात की फिक्र नहीं की कि कृष्ण ने क्या खाया और क्या पिआ, हमने इस बात की फिकिर की कि वह कौन था कृष्ण के भीतर जो खाने को भी देखता था, पीने को भी देखता था। हमने इसकी फिकिर नहीं की कि वह कब पैदा हुए और कब मरे, हमने इसकी फिकिर की कि वह कौन था जो पैदा होने में आया और मौत में विदा हुआ। वह कौन था जो भीतर था। हमने उस "इनरमोस्ट स्पिरिट' की, उस भीतरी अंतरात्मा की चिंता की। उसके लिए कोई तारीखें अर्थपूर्ण नहीं हैं।

ओशो रजनीश




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