श्री कृष्ण स्मृति भाग 13

 "भगवान श्री, यह तो ठीक है कि कृष्ण या क्राइस्ट जैसे लोगों को आत्मिक व्यक्तित्व "इटरनल' है, लेकिन वर्णित-शरीर तो आता है और जाता है, हम कृष्ण के वर्णित-शरीर की काल-गणना जानना चाहते हैं। कृष्ण-लीलाएं कब हुईं, महाभारत कब हुआ? ये स्थूल घटनाएं तो जानी जा सकती हैं। इसकी कुछ जानकारी हो।'


शरीर का जिनके लिए मूल्य है, उनके लिए स्थूल घटनाओं का भी मूल्य है। शरीर को जो छाया समझते हैं, उनके लिए कोई मूल्य नहीं रह जाता। कृष्ण कहते ही नहीं कि यह जो शरीर दिखाई पड़ रहा है, यह मैं हूं। जीसस भी नहीं कहते कि यह शरीर जो दिखाई पड़ रहा है यह मैं हूं। वे खुद ही इनकार कर जाते हैं कि इस पर खयाल मत करना, क्योंकि यह मैं नहीं हूं, अगर इसका तूने हिसाब रखा तो वह मेरा हिसाब नहीं होगा। बुद्ध के मरने के बाद पांच सौ वर्षों तक बुद्ध की कोई प्रतिमा नहीं बनाई गई, क्योंकि बुद्ध ने कहा था कि तुम मेरी प्रतिमा बनाना, इस शरीर की मत बनाना। मगर अब कैसे हम बुद्ध की प्रतिमा बनाएं। तो पांच सौ वर्ष तक बुद्ध के मरने के बाद, बुद्ध जिस वृक्ष के नीचे बैठते थे, बोधिवृक्ष--जहां वह घटना घटी जिससे वे बुद्ध हुए--उस वृक्ष का ही चित्र बनाकर जगह नीचे खाली छोड़ देते थे।

स्थूल-देह छाया से ज्यादा नहीं है। उसके हिसाब रखने का कोई प्रयोजन भी नहीं है। जिन्होंने भी उसका हिसाब रखा है, उन्होंने इसीलिए हिसाब रखा है कि उन्हें सूक्ष्म का कोई पता नहीं है, जिन्हें भी सूक्ष्म का पता है, उनके लिए स्थूल व्यर्थ हो जाता है। आप अपने सपनों का कोई हिसाब रखते हैं? कौन-से सपने आपने देखे और कब देखे? सपने देखते हैं और भूल जाते हैं। क्यों हिसाब नहीं रखते? क्योंकि उन्हें सपना समझ लेते हैं। कृष्ण की जो जिंदगी हमें दिखाई पड़ती है, वह सपने से ज्यादा नहीं है। जीसस ने कौन-से सपने देखे, हमने हिसाब रखा है? वह हिसाब हमने नहीं रखा। हो सकता है कभी वह जमाना आए कि आदमी पूछने लगे कि तुम्हारे कृष्ण हुए तो उन्होंने कोई सपने देखे थे या नहीं देखे थे? हुए होंगे तो सपने तो जरूर देखे होंगे। और अगर सपने देखे ही नहीं तो होने में भी शक हो जाता है। यह बात हो सकती है कभी, अगर सपने बहुत महत्वपूर्ण बन जाएं और कोई कौम सपनों का बहुत हिसाब रखने लगे, तो ठीक है, उनका हिसाब भी महत्वपूर्ण हो जाएगा। और जिस आदमी के सपनों का हमें कोई पता न होगा, उस आदमी के होने का भी संदेह हो जाएगा। जिस जिंदगी को हम स्थूल कहते हैं, कृष्ण या क्राइस्ट या महावीर या बुद्ध उस जिंदगी को सपना समझते हैं। और अगर उनके आसपास के लोगों को भी यह समझ में आ गया हो कि वह सपना है तो हिसाब नहीं रखा जाएगा। हिसाब नहीं रखा गया। हिसाब न रखा जाना बहुत सूचक है। हिसाब रखा गया होता तो समझा जाता कि लोगों ने कृष्ण को नहीं समझा और इसलिए हिसाब रख लिया।

मैं कह रहा था कि पांच सौ वर्ष तक बुद्ध की प्रतिमा नहीं बनी। कोई चित्र नहीं बना। अगर काई चित्र भी बनाता था तो वह बोधिवृक्ष का चित्र बनाता था और नीचे जगह खाली छोड़ देता था, जहां बुद्ध होने चाहिए। खाली जगह! बुद्ध एक खाली जगह ही थे। पांच सौ साल बाद चित्र और मूर्तियां बनाई गईं क्योंकि पांच सौ साल में वे लोग खो गए जिन्होंने समझा था कि बुद्ध की स्थूल जिंदगी तो सिर्फ सपना है। और पांच सौ साल में लोग प्रमुख हो गए जिन्होंने कहा, हिसाब तो रखना पड़ेगा--बुद्ध पैदा कब हुए, बुद्ध मरे कब, बुद्ध ने कहा क्या? उनकी शक्ल कैसी थी? उनका शरीर कैसा था। वह सब हिसाब बहुत बाद में रखा गया। ज्ञानियों ने हिसाब नहीं रखा, जब ज्ञानी खो गए तो अज्ञानियों ने हिसाब रखा। स्थूल शरीर का हिसाब अज्ञान से ही जन्मता है।

और फिर इससे क्या फर्क पड़ता है कि कृष्ण न भी हुए हों। कोई फर्क नहीं पड़ता। कृष्ण के होने से आपको क्या फर्क पड़ सकता है? कोई फर्क नहीं पड़ता। नहीं, लेकिन हम कहेंगे कि नहीं, अगर कृष्ण न हुए हों तो हमें फर्क पड़ जाएगा। क्या फर्क पड़ जाएगा? कृष्ण हुए या न हुए, इससे कोई फर्क न पड़ेगा। कृष्ण के होने की जो संभावना है आंतरिक, वह हो सकती है या नहीं हो सकती है, यह सवाल है। यह सवाल नहीं है कि कृष्ण हुए या नहीं, सवाल यह है कि ऐसा व्यक्ति हो सकता है या नहीं हो सकता। हो जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। हो सकता है, या नहीं हो सकता। अगर हो सकता है, तो हुए तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता, और अगर नहीं हो सकता है, तो भी हुए हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता। समाधिस्थ-चित्त को तो इससे कोई प्रयोजन नहीं है। अगर मुझसे कोई आकर कहे कि वह हुए ही नहीं क्योंकि कोई रेकॉर्ड नहीं है, तो मैं कहूंगा कि मानो कि नहीं हुए। हर्ज क्या है। सवाल यह है ही नहीं। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि ऐसा आदमी संभव है? ऐसे आदमी की "पासिबिलिटी' है? अगर आपके मन को यह समझ में आ जाए कि ऐसा आदमी संभव है, तो आदमी जिंदगी बदल सकती है। यह भी पक्का हो जाए, पत्थर मिल जाएं लिखे हुए कि वह हुए हैं, सारी कहानी मिल जाए और आपका मन इस बात को मानने को राजी न हो कि ऐसा व्यक्ति हो सकता है, तो आप कहेंगे कि नहीं, लिखा है पत्थरों पर, लिखा है किताबों में, लेकिन कहानी होगी, यह आदमी हो नहीं सकता, क्योंकि इसकी संभावना नहीं है।

कृष्ण के होने की संभावना है। इसलिए हुए, इसलिए हो सकते हैं, इसलिए हैं भी। लेकिन आंतरिक व्यक्तित्व को ध्यान में लेने की जरूरत है।

हमें तो शरीर दिखाई पड़ता है, वह जो आंतरिक है वह दिखाई नहीं पड़ता। तो हम बहुत उत्सुक होते हैं उस शरीर में। बुद्ध मर रहे हैं और कोई उनसे पूछता है कि आप मरने के बाद कहां होंगे? तो बुद्ध उससे कहते हैं, कहीं भी नहीं, क्योंकि पहले भी मैं कहीं नहीं था। और जो तुम्हें दिखाई पड़ रहा है वह मैं नहीं हूं, और जो मुझे दिखाई पड़ रहा है वह मैं हूं। इसलिए बाहर की जिंदगी सिर्फ देखी गई एक कहानी और एक नाटक हो जाती है। उसका कोई मूल्य नहीं है।

उसका मूल्य नहीं है, इस बात को जोर से कहने के लिए हमने कोई हिसाब नहीं रखा है। और हम  आगे भी उसका कोई हिसाब देने वाले नहीं हैं।

लेकिन इस मुल्क का मन कमजोर पड़ा है और वह भयभीत भी हुआ है। उसे डर पैदा हो गया है कि क्राइस्ट तो "हिस्टॉरिक' मालूम पड़ते हैं, ऐतिहासिक मालूम पड़ते हैं, हमारे कृष्ण की कहानी मालूम पड़ते हैं। यह कृष्ण और क्राइस्ट के मुकाबले हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है। क्राइस्ट के लिए तो प्रमाण है। मुल्क का मन कमजोर हुआ है। हमारा चित्त भी उन्हीं धारणाओं से प्रभावित हुआ है, जिन धारणाओं ने क्राइस्ट की जिंदगी को बचाकर रखने की कोशिश की है। तो हम भी पूछते हैं, उन्हीं बातों को, जो बेमानी हैं। अच्छा तो होगा जिस दिन हमारी हिम्मत फिर बढ़ सके तो हम उनसे कह सकेंगे, तुम भी पागल हो, क्राइस्ट जैसा आदमी हुआ और तुम मरने और जीने की तारीखों का हिसाब रखते रहे। तुमने समय गंवाया। इतने कीमती आदमी की बाबत इतनी गैर-कीमती जानकारी रखने की कोई जरूरत नहीं है।

इसलिए मैं कहता हूं, उसकी चिंता ही न करें। उसकी चिंता आपके मन की खबर देती है कि आपके लिए महत्वपूर्ण क्या है। जन्म और मरण? शरीर का होना? घटनाएं? यह बाहर की परिधि है जीवन की। या वह महत्वपूर्ण है जो इन सबके बीच खड़ा है, इन सबके भीतर खड़ा है--अलिप्त, असंग? वह सब जो इनके भीतर साक्षी की भांति खड़ा है, वह महत्वपूर्ण है? अगर आप भी मरने के क्षण में लौट कर देखेंगे तो आपको पूरी जिंदगी जो बीत गई, सपने में और आपकी जिंदगी में फर्क क्या रह जाएगा? आज भी आप लौटकर देखें अपनी पिछली जिंदगी को तो वह आप जिए थे सच में, या सपना देखा था, इन दोनों में फर्क कैसे कर पाएंगे? आप कैसे तय कर पाएंगे कि सच में ही मैं यह जीआ था जो मुझे याद आता है, या मैंने सपना देखा था?

च्वांग्त्से ने एक बहुत गहरी मजाक की है। च्वांग्त्से एक दिन सुबह उठा और उसने कहा कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं, सब इकट्ठे हो जाओ, मेरी मुश्किल को हल करो। उसके आश्रम के सारे लोग इकट्ठे हो गए। बड़े हैरान हुए, क्योंकि उन सबकी मुश्किलें च्वांग्त्से हमेशा हल करता था, वह भी मुश्किल में पड़ सकता है यह उन्होंने सोचा भी नहीं था। उन्होंने पूछा, तुम और मुश्किल में! हम तो सोचते थे, तुम मुश्किल के पार चले गए। च्वांग्त्से ने कहा, मुश्किल ऐसी ही है, जिसको पार की मुश्किल कह सकते हो। तो उन्होंने कहा, क्या है सवाल तुम्हारा? च्वांग्त्से ने कहा, रात मैंने एक सपना देखा कि मैं तितली हो गया हूं और फूलों पर उड़ रहा हूं। तो उन्होंने कहा, इसमें क्या मुश्किल है? हम सभी सपने देखते हैं। च्वांग्त्से ने कहा, मामला खतम नहीं होता। सुबह मैं उठा और मैंने देखा कि मैं फिर च्वांग्त्से हो गया हूं। अब सवाल यह है कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि तितली सो गई हो और सपना देख रही हो कि च्वांग्त्से हो गई है। अगर आदमी सोकर सपना देख सकता है, अगर आदमी सपने में तितली हो सकता है, तो तितली सपने में आदमी हो सकती है। तो मैं तुमसे यह पूछता हूं कि असली क्या है? रात मैंने जो सपना देखा तितली होने का, वह च्वांग्त्से सपना देख रहा था? या, अब तितली सपना देख रही है? अब मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं।

उस आश्रम के लोगों ने कहा, यह हमसे हल न हो सकेगा। आपने तो हमें भी मुश्किल में डाल दिया। अभी तक तो हम निश्चिंत हैं कि रात जो देखते हैं वह सपना है, और दिन में जो देखते हैं वह असलियत है। लेकिन च्वांग्त्से ने कहा, पागलो, जब रात तुम जो देखते हो तो दिन में जो देखा था वह भूल जाता है; उसी तरह, जैसे दिन में जब तुम जागते हो तो वह भूल जाता है जो सपना था। बल्कि एक और मजे की बात है, दिन में जागकर रात का सपना तो थोड़ा याद भी रह जाता है, लेकिन रात में सपने में सोते वक्त दिन का जागा हुआ बिलकुल याद नहीं रह जाता है। अगर याददाश्त निर्णायक है, तो रात का सपना ज्यादा असलियत होगा दिन के सपने से। और अगर एक आदमी सोया रहे, सोया रहे और न जागे, तो कैसे सिद्ध कर पाएगा कि जो वह देख रहा है वह सपना है। सपने में तो सपना सत्य ही मालूम होता है। सपने में तो सपना सपना नहीं मालूम होता।

असल में जिसे हम जिंदगी कहते हैं, जिसे हम स्थूल कहते हैं, वह कृष्ण जैसे व्यक्तित्व के लिए सपने से ज्यादा नहीं है। जो उनके पास थे उनकी भी समझ में आ गया है कि वह सपना है। इसलिए कोई हिसाब नहीं रखा गया। यह जानकर हुआ है, यह होशपूर्वक छोड़ा गया "रेकॉर्ड' है। इसके छोड़ने में सूचना है, इंगित है कुछ, कि इसका हिसाब तुम भी मत रखना। इस हिसाब में पड़ना ही मत। इसमें पड़ जाओगे तो शायद उसका पता न चल सके जो हिसाब के बाहर खड़ा हंस रहा है।

ओशो रजनीश



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