श्री कृष्ण स्मृति भाग 18

 "आपने कहा कि कृष्ण का जन्म अकारण है। लेकिन गीता में कृष्ण ही कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तबत्तब मुझे आना पड़ता है। कृपया इसे स्पष्ट करें।'


हां, कृष्ण कहते हैं कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तबत्तब मुझे आना पड़ता है।

इसका क्या मतलब होगा फिर?

यह वही व्यक्ति कह सकता है, जो परम स्वतंत्र हो। आप तो नहीं कह सकते कि जब-जब ऐसा होगा, मैं आऊंगा। आप यह भी नहीं कह सकते कि अगर ऐसा नहीं होगा तो मैं नहीं आऊंगा। हमारा आना बंधा हुआ आना है। लंबे कर्मों का बंधन है हमारा, "कॉज़ल चेन' है। हम ऐसा वायदा नहीं कर सकते; हम ऐसी "प्रॉमिस' नहीं दे सकते। हम हिम्मत भी नहीं कर सकते ऐसा वायदा करने की। कृष्ण यह भी हिम्मत कर रहे हैं। इस हिम्मत का भी कारण वही है कि वे किसी कारण से नहीं जीते हैं बंधकर, उनकी मौज है, इस मौज से कुछ भी निकल सकता है। यह वायदा स्वतंत्र चेतना से ही संभव है। अगर कृष्ण कहते हैं मैं आ जाऊंगा ऐसी स्थिति अगर हुई, तो स्थिति के कारण नहीं कृष्ण आ जाएंगे, अपनी स्वतंत्रता के कारण आ जाएंगे। स्थिति के कारण नहीं। कृष्ण यह नहीं कहते हैं कि अगर ऐसी स्थिति हुई, तो मजबूरी है। ऐसा नहीं है। यह "प्रॉमिस' है, यह वचन है। आ जाऊंगा, ऐसी स्थिति हुई। लेकिन यह वचन कौन दे सकता है?

एक बहुत अदभुत घटना महाभारत में है। सुबह है एक दिन, भीम और युधिष्ठिर अपने घर के बाहर बैठे हैं, और एक भिखारी भीख मांगने आ गया, और युधिष्ठिर ने उससे कहा कि तुम कल आ जाना। अभी थोड़ा काम में हूं, अच्छा हो कि कल आ जाओ।

भिखारी चला गया। भीम बैठकर यह सुनता था। उसने पास में पड़ा हुआ ढोल उठा लिया और बजाता हुआ और गांव की तरफ भागा। युधिष्ठिर ने कहा, यह क्या कर रहे हो? तो उसने कहा, समय न चूक जाए मैं गांव में खबर कर दूं कि मेरे भाई ने कल के लिए वचन दिया है, मेरा भाई समय का मालिक हो गया। मुझे पता नहीं था कि तुम समय के मालिक हो गए हो। तुम कल बचोगे, पक्का है? कल यह भिखारी बचेगा, पक्का है? कल तुम दोनों मिल सकोगे, यह पक्का है? तुमने समय को जीत लिया, मैं जाऊं गांव में खबर कर दूं। क्योंकि मुझे कुछ भरोसा नहीं कि अगर घड़ी-दो घड़ी चूका तो मैं बचूंगा कि नहीं। इसलिए मैं ढोल लेकर दौड़ता हूं। युधिष्ठिर ने कहा ठहरो, मुझसे भूल हो गई। यह वचन तो केवल वे ही दे सकते हैं जो परम स्वतंत्र हैं, भिखारी को वापिस बुला लो। जो मुझे देना है, आज ही दे दूं, कल का कोई भरोसा नहीं है।

लेकिन कृष्ण कल का वायदा नहीं कर रहे हैं, बड़ा लंबा वायदा है। वायदा यह है कि जब भी, तब मैं आ जाऊंगा। यह कोई कैदी नहीं कर सकता वायदा। एक कारागृह में हम किसी कैदी को डाल दें, वह वायदा नहीं कर सकता। यह वायदा तो परम स्वतंत्रता ही कर सकती है कि मैं आ जाऊंगा। कोई जंजीरें नहीं हैं। लेकिन ध्यान रहे यह परिस्थितियों के कारण नहीं आना है, यह स्वतंत्र चेतना के कारण यह वायदा है।

इस फर्क को ठीक से समझ लेना।

इस वायदे में भी कृष्ण की सिर्फ इतनी ही सूचना है कि समय से, परिस्थितियों से मेरा कोई बंधन नहीं है। मैं स्वतंत्र हूं। यह स्वतंत्रता की ही घोषणा है। लेकिन कई बार घोषणाएं बड़ी उलटी होती हैं; तब हम बड़ी कठिनाई में पड़ जाते हैं। हम सोचते हैं, कृष्ण को भी आना पड़ेगा। जैसे पानी को गर्म करते हैं तो सौ डिग्री पर उसे भाप बनना पड़ता है। अगर पानी किसी दिन मुझसे कहे, मत घबड़ाओ, अगर गर्मी कम होगी तो नब्बे डिग्री पर भी भाप बन जाऊंगा, तो उस दिन समझना कि पानी स्वतंत्र हो गया, अब कोई सौ डिग्री का बंधन न रहा। ऐसे आश्वासन परिपूर्ण स्वतंत्रता के बोध से निकलते हैं। जहां परतंत्रता बिलकुल गिर गई है, वहां से ऐसे फूल खिल जाते हैं स्वतंत्रता के, आश्वासन के; अन्यथा नहीं खिलते।

नहीं, कोई कृष्ण जैसा व्यक्ति आपके कारण नहीं आता है, अपने कारण आता है। हम सब बंधे हुए चलते हैं।

ओशो रजनीश



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