श्री कृष्ण स्मृति भाग 20

 "भगवान श्री, पुराण-कथाओं के आधार पर पता चलता है कि कृष्ण ही राम का रूप लेकर आते हैं और राम ही कृष्ण का रूप लेकर आते हैं। ये दोनों व्यक्ति क्या एक ही हैं? इस संबंध में आप प्रकाश डालें।'


इस संबंध को दोत्तीन बातें समझने से समझा जा सकता है।

जगत की सृजन की जो प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया में सदा से ही जिन्होंने खोज की है उन्होंने पाया कि वह प्रक्रिया तीन चीजों पर निर्भर है। वह "थ्री फोल्ड' है। अभी विज्ञान ने भी जब खोज किया अणु की, तो उसने पाया कि अणु भी गहरे में तोड़ने पर तीन चीजों में टूट जाता है। वह जो अंतिम हमारी उपलब्धि है विज्ञान की, वह भी कहती है, "इलेक्ट्रॉन', "प्रोटॉन', और न्यूट्रॉन' में अणु टूट जाता है। जिन लोगों ने धर्म के जगत में बड़ी गहरी अंतर्दृष्टि पाई थी, उन्होंने भी जगत को तीन हिस्सों में तोड़कर देखा था। विष्णु उन्हीं तीन के एक हिस्से हैं।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ये तीन शब्द धर्म के द्वारा जगत की सृजन-प्रक्रिया के तीन हिस्सों के नाम हैं। और इन तीनों के तीन अर्थ हैं। इसमें ब्रह्मा जन्मदाता, स्रष्टा, बनानेवाला, "क्रिएटिव फोर्स' है। इसमें शंकर, शिव--महेश--विध्वंस, प्रलय, विनाश, अंत की शक्ति है। विष्णु इन दोनों के बीच में है--संस्थापक, चलानेवाला। मृत्यु है, जन्म है और बीच में फैला हुआ जीवन है। जिसकी शुरुआत हुई है, उसका अंत होगा। और शुरुआत और अंत के बीच में फैला हुआ जीवन है। जिसकी शुरुआत शिव के बीच की यात्रा हैं। ब्रह्मा की एक दफे जरूरत पड़ेगी सृजन के क्षण में। और शिव की एक बार जरूरत पड़ेगी विध्वंस के क्षण में। और विष्णु की जरूरत दोनों बिंदुओं के मध्य में। सृजन और विध्वंस, और दोनों के बीच में जीवन। जन्म और मृत्यु, और दोनों के बीच जीवन।

ये तीन जो नाम हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के, ये व्यक्तियों के नाम नहीं हैं। ये कोई व्यक्ति नहीं हैं, ये सिर्फ शक्तियों के नाम हैं। और जैसा मैंने कहा, सृजन की तो एक दिन जरूरत पड़ती है, फिर विध्वंस की एक दिन जरूरत पड़ती है, लेकिन बीच में जीवन की जो जरूरत है, वह जीवन की जो ऊर्जा है, "लाइफ एनर्जी', या जिसको बर्गसन ने "एलान वाइटल' कहा है, वही विष्णु है। इसलिए इस देश के सभी अवतार विष्णु के अवतार हैं। असल में सभी अवतार विष्णु के ही होंगे। आप भी अवतार विष्णु के ही हैं। अवतरण ही विष्णु का होगा। जीवन का नाम विष्णु है। ऐसा न समझ लेना कि जो व्यक्ति राम था, वही व्यक्ति कृष्ण है। नहीं, जो ऊर्जा, जो "एनर्जी', जो "एलान वाइटल' राम में प्रगट हुआ था, वही कृष्ण में प्रगट है--और वही आप में भी प्रगट हो रहा है। और ऐसा नहीं है कि जो राम में प्रगट हुआ था वही रावण में प्रगट नहीं हो रहा है। हो तो वही प्रगट हो रहा है। वह जरा भटके हुए विष्णु हैं, और कोई बात नहीं है। वह जरा रास्ते से उतर गई जीवन-ऊर्जा है, और कोई बात नहीं है।

समस्त जीवन का नाम विष्णु है। समस्त अवतरण विष्णु का है। लेकिन भूल होती रही है, क्योंकि हम विष्णु को ही व्यक्ति बना लिए। राम एक व्यक्ति  हैं। कृष्ण एक व्यक्ति हैं, विष्णु व्यक्ति नहीं हैं। विष्णु केवल शक्ति का नाम है।

लेकिन पुरानी सारी अंतर्दृष्टियां काव्य में प्रगट हुईं। इसलिए स्वभावतः काव्य प्रत्येक शक्ति को व्यक्तिवाची बना लेता है। बनाएगा ही अन्यथा बात नहीं हो सकती, और उससे बड़ी पहेलियां पैदा हो जाती हैं।

मैंने सुना है, एक आदमी मर रहा है। वह मरणशैया पर पड़ा है। वह ईसाई है और चर्च का पादरी उसे आखिरी प्रायश्चित्त कराने आया है, "रिपेंटेंस' कराने आया है। नियमानुसार उस मरते हुए आदमी से उस पुरोहित ने पूछा, "डू यू बिलीव इन गॉड दि फादर?' वह आदमी चुप रहा। फिर दुबारा उससे पूछा कि "डू यू बिलीव इन गॉड दि सन?' वह आदमी फिर भी चुप रहा। फिर उस पुरोहित ने पूछा कि "एंड डू यू बिलीव इन गॉड दि होली घोस्ट?' ये ईसाइयों के तीन नाम हैं। गॉड, सन, होली घोस्ट। परमात्मा, पुत्र और पवित्र आत्मा। ये उनके तीन नाम हैं। तो उसने पूछा कि क्या तुम पितारूपी परमात्मा में विश्वास करते हो? क्या तुम पुत्ररूपी परमात्मा में विश्वास करते हो? क्या तुम पवित्र आत्मारूपी परमात्मा में विश्वास करते हो? उस मरते हुए आदमी ने अपने आसपास खड़े हुए लोगों से कहा, "लुक, हियर आय एम डाइंग एंड दिस फेलो इज आस्किंग मी पजॅल्स!' इधर तो मैं मर रहा हूं, और यह सज्जन पहेलियां पूछ रहे हैं! स्वभावतः, उस मरते हुए आदमी को ये पहेलियां थीं। मरते हुए आदमी को ही पहेलियां नहीं हैं, हम जीवित आदमियों को भी बड़ी-से-बड़ी पहेली जीवन की पहेली है।

क्या है यह जीवन? कैसे जन्मता, कैसे चलता, कैसे समाप्त होता? क्या है इसकी ऊर्जा? जो इसे फैलाती, चलाती, सिकोड़ती, विदा करवा देती। विज्ञान वैज्ञानिक ढंग के नाम देता है। वह कहता है, "इलेक्ट्रॉन' हैं, "प्रोटॉन' हैं, "न्यूट्रॉन' हैं। ये तीन भी बड़े मजे के शब्द हैं। इनमें एक विधायक शक्ति का नाम है, "प्रोट्रॉन'। "पॉजिटिव इलेक्ट्रॉन', विधायक विद्युत। कहना चाहिए ब्रह्मा। दूसरा शब्द है, "इलेक्ट्रॉन'। वह "निगेटिव इलेक्ट्रिसिटी', निषेधात्मक विद्युत। कहना चाहिए, शिव, शंकर। और तीसरा है "न्यूट्रॉन' जो दोनों के बीच डोलता और जोड़ता है। कहना चाहिए, विष्णु। वह सिर्फ भाषा एक विज्ञान की है, एक धर्म की है, उससे ज्यादा फर्क नहीं है। सारा जीवन विष्णु का अवतरण है। फूल खिलते हैं तो विष्णु खिलते हैं, हवाएं बहती हैं तो विष्णु बहते हैं। नदियां दौड़ती हैं तो विष्णु दौड़ते हैं। वृक्ष बड़े होते हैं तो विष्णु बड़े होते हैं। आदमी जन्मता है, बढ़ता है, जीता है, तो विष्णु। सब घड़ियां मृत्यु की शंकर की हैं। जब आदमी मरता है, तब विष्णु "चार्ज' सौंप देते हैं, तत्काल। वह शंकर के हाथ में चला जाता है मामला। इसीलिए तो शंकर को कोई अपनी लड़की देने को राजी नहीं होता था। मृत्यु के हाथों में कौन लड़की को दे! विध्वंस के हाथों में कौन स्त्री को दे, जो कि मूलतः सृजन की धारा है।

विष्णु के अवतार का मतलब यह नहीं है कि विष्णु नाम के व्यक्ति राम में हुए, फिर कृष्ण में हुए, फिर किसी और में हुए। नहीं, विष्णु नाम की ऊर्जा राम में उतरी, कृष्ण में उतरी, सब में उतरती है, उतरती रहेगी। शंकर नाम की ऊर्जा है, उसे विदा देती रहेगी। इस तरह समझेंगे तो बात सीधी और साफ समझ में आ सकती है। फिर पहेली नहीं रह जाती, फिर पहेली नहीं है।

जीवन में कोई भी चीज निर्माण करनी हो तो जो न्यूनतम संख्या है, वह तीन है। इससे न्यून संख्या से काम नहीं चलेगा। दो से काम नहीं चलेगा। एक से तो चल ही नहीं सकता। एक तो बिलकुल एकरूप हो जाएगा सब। एक रंग, एकरस हो जाएगा। सब वैविध्य खो जाएगा। दो भी काफी नहीं है क्योंकि दो को जोड़ने के लिए सदा तीसरे की जरूरत पड़ेगी। अन्यथा वे अजुड़े रह जाएंगे, अनजुड़े रह जाएंगे, अलग-अलग रह जाएंगे। न्यूनतम जो संभावना है जगत की, विकास की, वह तीन से शुरू होती है। तीन से ज्यादा हो सकता है, तीन से कम करना मुश्किल पड़ेगा। लेकिन वे तीन भी एक की ही शक्लें हैं। इसलिए हमने त्रिमूर्ति बनाई। इसलिए हमने इन देवताओं को अलग-अलग नहीं रखा। क्योंकि अलग-अलग रखने से भूल हो जाती है। क्योंकि अगर ये तीन देवता अलग हों, तो फिर इनको जोड़ने की जरूरत पड़ जाएगी, और यह अंतहीन, "इनफिनिट रिग्रेस' हो जाएगी। इसमें कोई हिसाब लगाना मुश्किल हो जाएगा कि कहां रुकें। इसलिए ये तीन चेहरे एक ही ऊर्जा के, एक ही "एलान वाइटल' के, एक ही जीवन-शक्ति के तीन चेहरे हैं। वही जन्म लेता, वही चलाता, वही विदा करता है। लेकिन, "ऑफिशियली' तीन हिस्सों में हम बांटते हैं। वे तीन हिस्से जो हैं, "ऑफिशियल डिवीजन' हैं। वह सिर्फ काम का बंटवारा है, "डिवीजन आफ लेबर' है। जीवन-ऊर्जा तीन हिस्सों में बंटकर सारे जगत का विस्तार करती है।

ओशो रजनीश




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