श्री कृष्ण स्मृति भाग 24
"गीता आप प्रामाणिक वचन मानेंगे कृष्ण के?'
पूछते हैं, गीता को प्रामाणिक वचन मानेंगे कृष्ण के?
कृष्ण जैसा व्यक्ति हुआ हो तो गीता जैसा वचन प्रामाणिक ही होगा। यह सवाल नहीं है कि कृष्ण ऐसा बोला कि नहीं बोला। सवाल यह है कि कृष्ण बोलेगा तो ऐसा ही बोल सकता है। और अगर कृष्ण ने न बोला हो और व्यास ने ही गीता लिखी हो, तो कोई बहुत फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि व्यास लिख नहीं सकता अगर कृष्ण जैसा व्यक्ति न हो। व्यास को भी कहना पड़े--व्यास लिखे, कोई फर्क नहीं पड़ता है--लेकिन व्यास भी तो गीता बोलेगा न! इससे क्या फर्क पड़ता है? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर कृष्ण बोले, व्यास बोले, कोई अ, ब, स कोई और बोले, लेकिन गीता बोलने के लिए एक भीतर कोई चाहिए न! यह गीता आसमान से पैदा नहीं होती। कहीं से पैदा होती है। नाम से क्या फर्क पड़ता है! उस आदमी का नाम व्यास है, कि कृष्ण है, कि क्या है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
इसलिए मैं उल्टी तरह से सोचता हूं। मैं यह नहीं कहता कि गीता का वचन प्रामाणिक वचन है कृष्ण का। गीता-वचन प्रामाणिक है या नहीं; मैं यह कहता हूं, गीता है, यह प्रमाण है, कृष्ण की खबर है। इस तरह ही देखता हूं, गीता है, यह बोली गई, यह कही गई, यह लिखी गई, यह अस्तित्व में है। यह बिना कृष्ण के अस्तित्व में नहीं हो सकती। एक आदमी तो चाहिए न जो यह बोले, जो यह लिखे! वह कौन था, इससे क्या फर्क पड़ता है? उसका नाम क्या था, इससे क्या फर्क पड़ता है? लेकिन एक चेतना तो चाहिए न जिससे इसका जन्म हो। गंगोत्री प्रमाण नहीं है गंगा के लिए, गंगा प्रमाण है गंगोत्री के लिए। गंगा है तो हम कह सकते हैं कि गंगोत्री होगी। चाहे हो न हो; चाहे मिले, चाहे न मिले; चाहे खोज पाएं या न खोज पाएं, लेकिन गंगा है तो गंगोत्री होगी। गीता है तो कृष्ण होंगे। गीता से कृष्ण की तरफ चलना मुझे उचित मालूम पड़ता है, क्योंकि गीता अभी है। कृष्ण की तरफ से गीता की तरफ चलेंगे तो झंझटें पड़ेंगी। क्योंकि उसमें डर हो सकता है कि कृष्ण न हों, और तब फिर गीता संदिग्ध हो जाए, और फिर गीता को हमें कोई और आदमी खोजना पड़े। लेकिन, हम बड़े पागलपन का काम करते हैं।
ओशो रजनीश
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