श्री कृष्ण स्मृति भाग 27
"भागवत में उल्लेख है...जो कृष्ण पर चर्चा में हमने बात की थी और आपने बताया था कि शुक्र का विनियोग होते हुए भी वसुदेव और देवकी का जो संभोग हुआ था, वह आध्यात्मिक संभोग था, जिसकी वजह से कृष्ण मिले...मगर कृष्ण के सोलह हजार रानियों या आठ प्रतिभावान पटरानियों के साथ संबंध होने पर भी कृष्ण या राम, दोनों के पुत्र उतने प्रतिभावान नहीं हुए। इससे क्या यह नतीजा निकल सकता है कि राम या कृष्ण ने आध्यात्मिक संभोग अपनी पत्नियों के साथ किया ही नहीं?'
इसमें दो बातें समझ लेनी उचित होंगी।
एक तो आध्यात्मिक संभोग का यह अर्थ नहीं है कि मैं शारीरिक संभोग की कोई निंदा कर रहा हूं। आध्यात्मिक संभोग से मेरा सिर्फ इतना ही अर्थ है कि दो व्यक्तियों के शरीर नहीं मिले हैं, आत्मा भी मिली है। शरीर के मिलन से पैदा होता है, वह उन ऊंचाइयों को उपलब्ध नहीं हो सकता, जो आत्मा के मिलन से पैदा होता है और ऊंचाइयों को उपलब्ध होता है। कृष्ण का जन्म मैं आध्यात्मिक संभोग का फल मानता हूं। क्राइस्ट का जन्म भी आध्यात्मिक संभोग का फल मानता हूं। इसीलिए क्राइस्ट के जानने वाले लोग यह कह सके कि क्राइस्ट का जन्म भी हो गया लेकिन "मेरी' वर्जिन बनी रही, क्वांरी बनी रही। क्योंकि शरीर के तल पर कोई वासना और कोई गहरी कामना न थी। आत्मा के तल पर मिलन हुआ था, शरीर छाया की तरह उसके पीछे गया था। इसलिए छाया पर उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।
लेकिन यह सवाल निश्चित ही महत्वपूर्ण है कि फिर कृष्ण के बच्चे हैं, राम के बच्चे हैं, इनका क्या हुआ?
इसके और कारण हैं। पहला कारण तो यह है कि कृष्ण से बड़ा बेटा तो पैदा होना असंभव है। वसुदेव से बड़ा बेटा पैदा हो सकता है। वसुदेव साधारणजन हैं। कृष्ण तो ऊंचाई हैं, आखिरी से आखिरी जो हो सकती है। कृष्ण जैसे पिता से जो भी बेटा होगा, वह इतिहास में सदा भुला दिया जाएगा। वह सदा कृष्ण जैसे व्यक्ति की छाया में पड़ जाता है। जैसे विंध्याचल में जो पहाड़ की ऊंचाई बड़ी ऊंचाई हो सकती है, वही ऊंचाई एवरेस्ट के पास आकर बड़ी मुश्किल में पड़ जाएगी। चीजें तो दिखाई पड़ती हैं न! कृष्ण के पीछे कोई भी नहीं दिखाई पड़ सकता। इसलिए जो लोग "पीक' को छूते हैं जीवन की, आखिरी ऊंचाई को छूते हैं, उनसे बहुत अच्छे बेटे नहीं उपलब्ध हो पाते। कभी नहीं हो सके हैं। न बुद्ध से हो सका, न कृष्ण से हो सका, न राम से हो सका, न महावीर से हो सका, किसी से नहीं हो सका।
इसका कारण सिर्फ इतना है कि इतनी बड़ी ऊंचाई पर ये खड़े हैं कि लव-कुश कितने ही ऊंचे हों, राम की छाया में ही खो जाएंगे। ये लव-कुश किसी और के घर पैदा हुए होते, तो ये भी इतिहास में नाम छोड़ जाते। साधारणजन न थे। लेकिन नाम छोड़ जाना तो सदा "रिलेटिव' और "कंपेरेटिव' है। राम के साथ नाम नहीं छोड़ सकते। साधारण बेटे न थे ये दोनों। राम को साधारण बेटा हो भी नहीं सकता। लेकिन सवाल तो राम से तुलना का पड़ेगा इतिहास में। दशरथ बहुत साधारण पिता हैं। दशरथ को कोई जानता भी नहीं अगर राम पैदा न होते। दशरथ का कोई अर्थ भी न होता। राम हुए हैं इसलिए दशरथ का कोई नाम है। छोटे बाप के घर बड़ा बेटा पैदा हो जाता है, तो बाप भी बड़ा हो जाता है और बड़े बाप के घर बड़ा बेटा भी पैदा हो जाता है, तो छोटा हो जाता है।
संभोग तो आध्यात्मिक ही था। जो पैदा हुए हैं आध्यात्मिक से ही पैदा हुए हैं। लेकिन हमारी तौल तो "रिलेटिव' होगी सदा, "कंपेरेटिव' होगी, तुलना होगी।
वह कहानी हम सबको पता है कि अकबर ने एक लकीर खींची और दरबार के लोगों से कहा कि बिना छुए इसे छोटा कर दो। और कोई उसे छोटा न कर पाया, और बीरबल ने एक बड़ी लकीर उसके पास खींच दी। उस लकीर को छुआ नहीं और वह लकीर छोटी हो गई। लकीर उतनी ही रही।
लव-कुश जो हैं, हैं, लेकिन राम की लकीर बहुत बड़ी है। उसके नीचे वे एकदम खो जाते हैं। राम की लकीर न होती, तो लव-कुश भी दिखाई पड़ते। इतिहास उनके भी चरण-चिह्नों का स्मरण रखता। लेकिन उनकी जरूरत न रही। राम के पीछे आकर उनका कोई अर्थ नहीं।
ओशो रजनीश
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