श्री कृष्ण स्मृति भाग 29

 "आपने कहा कि आप विवाह को अनैतिक कहते हैं। और सर्वाधिक विवाह कृष्ण करते हैं। क्या वे विवाह रूपी अनैतिकता को प्रोत्साहित करते हैं?'


विवाह को अनैतिक कहा मैंनेविवाह करने को नहीं। जो लोग प्रेम करेंगेवे भी साथ रहना चाहेंगे। इसलिए प्रेम से जो विवाह निकलेगावह अनैतिक नहीं रह जाएगा। लेकिन हम उल्टा काम कर रहे हैं। हम विवाह से प्रेम निकालने की कोशिश कर रहे हैंजो कि नहीं हो सकता। विवाह तो एक बंधन है और प्रेम एक मुक्ति है। लेकिन जिनके जीवन में प्रेम आया हैवे भी साथ जीना चाहेंस्वाभाविक है।
लेकिन साथ जीना उनके प्रेम की छाया ही हो। जिस दिन विवाह की संस्था नहीं होगी, उस दिन स्त्री और पुरुष साथ नहीं रहेंगेऐसा मैं नहीं कह रहा हूं। सच तो मैं ऐसा कह रहा हूं कि उस दिन ही वे ठीक से साथ रह सकेंगे। अभी साथ दिखाई पड़ते हैंसाथ रहते नहीं। साथ होना ही संग होना नहीं है। पास-पास होना ही निकट होना नहीं है। जुड़े होना ही एक होना नहीं है।
विवाह की संस्था को मैं अनैतिक कह रहा हूं। और विवाह की संस्था चाहेगी कि प्रेम दुनिया में न बचे। कोई भी संस्था सहज उदभावनाओं के विपरीत होती है। क्योंकि तब संस्थाएं नहीं टिक सकतीं। दो व्यक्ति जब प्रेम करते हैंतब वह प्रेम अनूठा ही होता है। वैसा प्रेम किन्हीं दो व्यक्तियों ने कहीं किया होता है। लेकिन दो व्यक्ति जब विवाह करते हैं तब वह अनूठा नहीं होता। तब वैसा विवाह करोड़ों लोगों ने किया है। विवाह एक पुनरुक्ति हैप्रेम एक मौलिक घटना है। जितना विवाह प्रभावी होगाउतना ही प्रेम का गला घुटता चला जाएगा। लेकिनजिस दिन हम प्रेम को प्राथमिकता दे सकेंगे जीवन में और दो व्यक्तियों का साथ रहना एक समझौता नहीं होगाउनके प्रेम का सहज फल होगाउस दिन विवाह नहीं होगा इस अर्थ में जिस तरह आज है। न इस तरह तलाक होगाजैसा आज है। दो व्यक्ति साथ रहना चाहेंयह उनका आनंद है। इसमें समाज को कोई बाधा नहीं है।
मैंने विवाह संस्था की तरह अनैतिक हैऐसा कहा। विवाह प्रेम की छाया की तरह बिलकुल स्वाभाविक है। उसमें कोई अनैतिकता नहीं है।
ओशो रजनीश


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