श्री कृष्ण स्मृति भाग 41

 "भगवान श्री, आप बहुधा कहा करते हैं कि "प्रेयर इज ए स्टेट आफ कांशसनेस'। और कभी-कभी यह भी कहा करते हैं कि "प्रेयर इज ए स्टेट आफ ग्रेटीटयूड'। तब फिर "प्रेयर' अद्वैत क्यों न होगा?'


नहीं, ऐसा मैं कभी नहीं कहता। मैं ऐसा कभी नहीं कहता कि "प्रेयर इज ए स्टेट आफ माइंड'। मैं कहता हूं, "प्रेयरफुलनेस इज ए स्टेट आफ माइंड'। "प्रेयरफुलनेस'। प्रार्थना नहीं, प्रार्थनामयता। प्रार्थना नहीं, प्रार्थनापूर्ण होना।

एक आदमी सुबह प्रार्थना कर रहा है, यह और बात है। एक आदमी उठता है, बैठता है, चलता है और प्रार्थनापूर्ण है। वह जूता भी पहनता है तो प्रार्थनापूर्ण है। वह जूते को भी उठाकर रखता है तो ऐसे ही रखता है जैसे भगवान की मूर्ति को रखता हो। वह आदमी प्रार्थनापूर्ण है। वह रास्ते के किनारे एक फूल के पास खड़ा होता है तो भी वैसे ही खड़ा होता है जैसे स्वयं परमात्मा उसके सामने खड़ा हो तो खड़ा होगा। यह आदमी प्रार्थनापूर्ण है, यह कभी प्रार्थना कर नहीं रहा है। इसने प्रार्थना कभी की नहीं। "प्रेयर' को नहीं कहता हूं मैं कभी कि वह चेतना है। "प्रेयरफुलनेस', प्रार्थनापूर्ण हृदय। यह बड़ी और बात है। प्रार्थनापूर्ण हृदय का मतलब फिर ध्यान हो जाता है, फिर कोई फर्क नहीं रहता।

प्रार्थना तो करते ही वे हैं, जो प्रार्थनापूर्ण नहीं हैं। प्रार्थनापूर्ण प्रार्थना करेगा कैसे? वह तो प्रार्थना को जीता है, वह तो प्रार्थना होता है। वह कुछ और करता ही नहीं, और कर ही नहीं सकता। प्रार्थना तो वही करेगा जो और कुछ भी करता रहता है। दुकान भी करता है, घृणा भी करता है, क्रोध भी करता है, बाजार भी करता है, कुछ और भी करता है, उसी में प्रार्थना भी उसकी बड़े कामों की "लिस्ट' में एक चीज है, एक "आइटम' है। उसको भी करता है। लेकिन प्रार्थनापूर्ण तो वह है कि दुकान भी करता है तो प्रार्थना करता है।

अब कबीर है, कबीर कपड़ा भी बुन रहा है, तो कोई उससे कहता है कि तुम अब क्यों कपड़ा बुनने में लगे हो? तो वह कहता है, यह मेरी प्रार्थना है। वह कहता है, मैं चलता हूं तो वह मेरा ध्यान है, मैं उठता हूं तो वह मेरा ध्यान है, मैं खाता हूं तो वह मेरा ध्यान है, मैं कपड़ा बुनता हूं तो वह मेरा ध्यान है। वह कहता है--साधो, सहज समाधि भली। जो करते हो, वही समाधि है; वही मेरा ध्यान है, वही मेरी प्रार्थना है। वह बाजार बेचने जा रहा है कबीर अपने कपड़ों को, तो नाचता हुआ चला जा रहा है। वह बाजार में ग्राहक उससे कपड़ा खरीदने आए हैं तो वह उनसे कहता है कि राम, ऐसी बढ़िया चीज मैंने पहले कभी बनाई नहीं, इसमें प्रार्थना को भी इसके धागे-धागे में मैंने बुन दिया है। राम कहता है उसे कबीर, जो खरीदने आया है। अब इसके लिए न कोई खरीददार है, न कोई बेचनेवाला है। इधर राम ही बनाने वाला है, राम ही पहनने वाला है। इधर राम ही बुनने वाला है, राम ही बुना जा रहा है। यह स्थिति प्रार्थनापूर्ण है, यह "प्रेयरफुल' है। इसलिए कबीर को कभी किसी ने प्रार्थना करते नहीं देखा कि वह मस्जिद में चला गया हो और चिल्ला रहा हो, अजान कर रहा हो। कि कभी मंदिर में चला गया हो और कह रहा हो, हे भगवान! बल्कि वह निरंतर कह रहा है कि क्या तुम्हारा भगवान बहरा है, जो तुम इतने जोर से चिल्ला रहे हो? ऐ मुल्ला, तू इतनी जोर से क्यों चिल्लाता है, क्या तेरा भगवान बहरा है? क्योंकि हम तो बिना चिल्लाए ही पाते हैं कि वह सुन लेता है। हम तो बिना कहे पाते हैं कि वह समझ लेता है। तू इतने जोर से क्यों चिल्ला रहा है? क्या तेरा भगवान बहरा हो गया है? तो कबीर मजाक करते हैं बहुत उन सबकी जो प्रार्थना कर रहे हैं। और यह आदमी प्रार्थनापूर्ण है, इसलिए मजाक कर सकता है। अन्यथा मजाक नहीं कर सकता। तो प्रार्थनापूर्ण होने को तो मैं कहता हूं, प्रार्थना के लिए नहीं कहता हूं।

ओशो रजनीश



टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्री कृष्ण स्मृति भाग 134

श्री कृष्ण स्मृति भाग 114

श्री कृष्ण स्मृति भाग 122