श्री कृष्ण स्मृति भाग 43
"भगवान श्री, राम का जीवन तो वाल्मीकि ने राम के होने के पहले लिख दिया था। वे भी भगवान थे। तो उनका जीवन शृंखलाबद्ध कैसे हुआ?'
यह सवाल बहुत अच्छा पूछा है। यह पूछा है कि राम का जीवन तो वाल्मीकि ने राम के होने के पहले लिख दिया था।
लिखा जा सकता है। राम का जीवन लिखा जा सकता है। वह मर्यादा के आदमी थे। यह मजाक छिपी है उसमें कि वाल्मीकि ने जो पहले लिखा राम का जीवन, उसका मतलब कुल इतना है कि राम आदमी ऐसे हैं कि उनका जीवन पहले ही से लिखा जा सकता है कि वह क्या करेंगे। वह चरित्र है। क्या करेंगे, क्या नहीं करेंगे, इसके बाबत पहले से पक्का हुआ जा सकता है। ऐसा नहीं है कि वाल्मीकि ने लिख दिया था। इस घटना में बड़ा मजाक छिपा हुआ है, और इस मुल्क ने बड़े गहरे मजाक किए हैं जो कि हम पकड़ नहीं पाते। इस घटना में यह छिपा है, कि इतना बंधा हुआ जीवन है राम का कि राम के जीने के पहले ही वाल्मीकि कवि लिख सकता है। इतना "सीरियल एक्ज़िस्टेंस' है। राम के बाबत पक्का हुआ जा सकता है कि तुम क्या करोगे? राम पैदा न हों, उसके पहले कहा जा सकता है कि यह आदमी पैदा होकर क्या करेगा? ऐसा नहीं है कि वाल्मीकि ने पहले लिख दिया। लिखा तो पीछे ही गया, लेकिन राम का जीवन "सीरियल' होने की वजह से यह मजाक प्रचलित हो गया उन वर्गों में, जो मजाक का मतलब समझते हैं। यह मजाक प्रचलित हो गया कि राम की भी कोई जिंदगी है, यह तो एक चरित्र है, जैसे कि एक फिल्म लिखी जाती है। पहले लिख दी जाती है, फिर खेली जाती है। यह तो पहले लिख दी गई है, इसकी "स्क्रिप्ट' पहले लिखी जा सकती है। राम का मामला सब सुनिश्चित है, "सर्टेन' है, उसके बाबत कहा जा सकता है कि सीता चोरी जाएगी तो राम क्या करेंगे। यह भी कहा जा सकता है कि सीता को लंका से ले आएंगे तो अग्नि-परीक्षा जरूर लेंगे। यह सब कहा जा सकता है। और इतने के बावजूद भी, अग्नि-परीक्षा हो जाए फिर भी एक धोबी कह देगा कि हमें संदेह है, तो निकाल बाहर करेंगे। यह सब मामला, बिलकुल पक्का है। कृष्ण के मामले में पक्का कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
ओशो रजनीश
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