श्री कृष्ण स्मृति भाग 44

 "भगवान श्री, आप मार्टिन बूबर की भाषा में कृष्ण को "इंटरप्रीट' करते हैं?'


नहीं, मार्टिन बूबर घूम-फिर कर द्वैतवादी है। मार्टिन बूबर अद्वैतवादी नहीं है। असल में मार्टिन बूबर की जो जड़ें हैं, वे हिब्रू और ज्यू विचार में हैं। तो मार्टिन बूबर जो कहता है वह ज्यादा-से-ज्यादा मैं और तू के बीच गहरी-से-गहरी आंतरिकता पैदा हो, संबंध पैदा हो, इसके लिए तो आतुर है। मैं और तू--"आई' और "यू' के बीच एक बड़ा आंतरिक भाव पैदा हो--इतना भाव हो कि मैं तू तक बह जाए, तू मैं तक आ जाए, लेकिन मैं और तू को मिटाने की तैयारी मार्टिन बूबर की नहीं है। असल में मार्टिन बूबर जिस परंपरा से आता है, उस परंपरा में ही द्वैत को मिटाने की तैयारी नहीं है। जीसस को यहूदियों ने सूली इस वजह से दी कि जीसस ने ऐसे वक्तव्य दे दिए जो अद्वैतवादी थे। जीसस ने कह दिया--"आई एंड माइ फादर आर वन'। यह खतरनाक हो गया। यहूदी विचार इसको न समझ सका। यहूदियों ने कहा, यह बर्दाश्त के बाहर है। तुम कितना ही कुछ कहो, परमात्मा ऊपर है और तुम चरणों में हो। तुम यह घोषणा नहीं कर सकते कि तुम परमात्मा हो। मुसलमानों ने सूफियों को सताया और सूलियां दीं। इसका कारण वही यहूदी विचार की परंपरा है। जब मंसूर ने कहा, अनलहक--मैं ही ईश्वर हूं--तो फिर बर्दाश्त के बाहर हो गया। कहा कि तुम कितने ही ऊपर उठो, लेकिन तुम ईश्वर नहीं हो सकते। मुहम्मद को भी ईश्वर होने का दर्जा नहीं दे सका मुसलमान। मुहम्मद को भी कहा, संदेशवाहक है, पैगंबर है, अवतार नहीं है। क्योंकि ईश्वर अलग है और हम अलग हैं। हम उसके चरणों में हो सकते हैं। ऊंची-से-ऊंची ऊंचाई जो है, वह उसके चरणों में है।

ओशो रजनीश





टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

श्री कृष्ण स्मृति भाग 134

श्री कृष्ण स्मृति भाग 114

श्री कृष्ण स्मृति भाग 122