श्री कृष्ण स्मृति भाग 48
"कृष्ण-अर्जुन के आपस के जो "रिलेशंस' हैं, वहां कृष्ण क्या किसी वक्त स्मृति-आगार से कुछ उपयोग नहीं किए, और पूरे समय अपना जीवन "स्पांटेनियस' रखा?'
जीवन तो हर वक्त "स्पांटेनियस' है। स्मृति का उपयोग वह करते हैं, वह तो मैं कह रहा हूं। वह मैं कह रहा हूं, स्मृति का उपयोग करने में वह मालिक हैं, और आप अपनी स्मृति के उपयोग करने में मालिक नहीं हैं। स्मृति ही आपका उपयोग कर रही है। आप नहीं कर रहे हैं उपयोग।
एक आदमी आपके पास बैठा है। आप उससे पूछते हैं, आप किस जाति के हैं? वह कहता है, मैं मुसलमान हूं। बस, मुसलमान के बाबत आपकी एक स्मृति है, आप इस आदमी पर लागू कर देंगे। इस मुसलमान से उसका कोई लेना-देना नहीं है। आपके गांव में कोई मुसलमान गुंडा होगा, उसने मंदिर में आग लगा दी होगी, यह बिचारे से उसका कोई संबंध नहीं है। अब आप दूर सरक कर बैठ गए, कि मुसलमान है! अब आप स्मृति के गुलाम हुए। अब आपने स्मृति की गुलामी शुरू कर दी। हिंदुस्तान के हिंदू किसी मुसलमान को मार डालेंगे, पाकिस्तान के किसी हिंदू से बदला लिया जाएगा। क्या पागलपन है! स्मृति काम कर रही है। बस, स्मृति से ही आप जी रहे हैं। किसी और को मार रहे हैं किसी और के लिए। दो मुसलमानों के बीच क्या संबंध है? दो हिंदुओं के बीच क्या संबंध है? लेकिन नहीं, मुसलमान के बाबत आपकी स्मृति हर मुसलमान पर आप लागू कर लेंगे। बड़ी गलत बात कर रहे हैं। स्मृति आपको उपयोग कर रही है, आप स्मृति का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अगर आप कर रहे होते तो आप कहते, ठीक है, यह आदमी "एक्स' मुसलमान है, वह "वाई' मुसलमान था, इसका उसका कोई मतलब नहीं है। ठीक है, इतना हम समझें कि तुम उसी धर्म को मानते हो, जिसको वह आदमी मानता था। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है! इससे आप सरकेंगे नहीं दूर, इससे आप कोई निर्णय नहीं लेंगे। इससे इस आदमी की बाबत आप पूर्वधारणा तय नहीं करेंगे। इस आदमी को देखेंगे, समझेंगे, उस समझ से ही आप जियेंगे।
सहज जीवन स्मृति का उपयोग है। शृंखलाबद्ध जीवन स्मृति की दासता है।
ओशो रजनीश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें