श्री कृष्ण स्मृति भाग 49
"आपने कहा कि कृष्ण के हाथों जो मरता है वह पुण्य-कर्म का फल है। और यह बात जब आप कहते हैं तो मन में एक आनंददायक पीड़ा होती है। एक दूसरा प्रश्न करूं, जवाब दें, न दें। जो यह नाटक आप कर रहे हैं, यह क्या अकारण ही है?'
बिलकुल अकारण है। बिलकुल अकारण है, हूंऽऽ...। यह नाटक हो रहा है, हूंऽऽ...।
और पुण्य-कर्म का फल है, ऐसा जब कहता हूं तो मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि इस जीवन में जो भी घटित होता है, इस "मैनिफेस्टेड', इस प्रगट जगत में जो भी घटित होता है, वह अकारण नहीं है। कृष्ण से अगर मिलना भी हो जाता है, तो भी इस घटना के जगत में कृष्ण से मिलना भी आकस्मिक और "एक्सिडेंटल' नहीं है। तो कृष्ण के हाथ से मरना तो हो ही नहीं सकता आकस्मिक। इस जगत में आकस्मिक कुछ भी नहीं है। किसी से हम मिले हैं, मिल रहे हैं; किसी से हम लड़े हैं, लड़ रहे हैं; किसी से हम प्रेम में हैं, प्रेम कर रहे हैं; किसी के हम मित्र हैं, किसी के हम शत्रु हैं, यह हमारे पूरे होने से, हमारे पूरे अनंत होने से निकला है। इस होने में आकस्मिकता नहीं है। प्रगट जगत में कुछ भी आकस्मिक नहीं है। और जब प्रगट जगत में कुछ अकारण प्रगट होता है, तब हमें चमत्कार मालूम होने लगता है। क्योंकि वह अप्रगट जगत की खबर लाता है। कृष्ण का होना बिलकुल अकारण है। अर्जुन से कृष्ण का संबंध अकारण नहीं है। अर्जुन से कृष्ण की तरफ तो बिलकुल ही अकारण नहीं है।
इसे थोड़ा समझने में कठिनाई पड़ेगी।
कृष्ण जैसे व्यक्ति के साथ हमारे संबंध "वन वे ट्रैफिक' के होते हैं। हम उसे प्रेम करते हैं। वह हमें प्रेम करता है, ऐसा नहीं कहा जा सकता है। वह प्रेमपूर्ण है, बस इतना ही कहा जा सकता है। हम उसके पास जाते हैं, उसका प्रेम हमें मिलता है। इसलिए यह हो सकता है कि हम समझते हों कि वह हमें प्रेम करता है। लेकिन वह सिर्फ प्रेमपूर्ण है। हम उसके पास जाते हैं, प्रेम हम पर भरता है। हमारी तरफ से हम प्रेम करते हैं। लेकिन "वन वे ट्रैफिक' है। दूसरी तरफ से प्रेम आता नहीं, दूसरी तरफ प्रेम है। हमारी तरफ से जाता है हमको आता हुआ मालूम पड़ता है, वह हमारी समझ है।
कृष्ण की तरफ से किसी का मारा जाना बिलकुल अकारण है। लेकिन जो मारा गया है, वह अकारण नहीं है। उसकी तरफ से कारण है। वह अपनी जिंदगी की लंबी शृंखलाबद्ध व्यवस्था में जी रहा है, वह कोई सहज जीवन नहीं है उसका। असल में राक्षस का जीवन सहज कैसे हो सकता है! या जिनका भी जीवन सहज नहीं है उनका जीवन राक्षस से अन्यथा कैसे हो सकता है! उसका जीवन सहज नहीं है, शृंखलाबद्ध है, वह तो अपने अतीत से जी रहा है। इसलिए अगर वह कृष्ण के हाथ से मरता है, तो उसके अतीत की शृंखला के आगे ही जुड़ी हुई यह कड़ी है। उसके अतीत से ही निकलती है। कृष्ण के लिए अकारण है। वह नहीं मरता तो कृष्ण उसको ढूंढ़ते हुए नहीं फिरते। वह आ गया है सामने, बात और है। अगर कृष्ण किसी को प्रेम कर रहे हैं, वह नहीं मिलता तो वह उसे ढूंढ़ते नहीं फिरते। वह सामने आ गया है, बात और है। अगर कृष्ण को कोई भी न मिले, वह अकेले जंगल में बैठे हों, तो भी प्रेम करते रहेंगे--उस जंगल के शून्य को, उस निपट एकांत को, उस निर्जन को उनका प्रेम मिलता रहेगा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
ओशो रजनीश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें