श्री कृष्ण स्मृति भाग 51
"तो क्या कभी-कभी मन और हृदय, विचार और भाव एक नहीं हो जाते?'
कई बार एक हो जाते हैं। और जब वे एक हो जाते हैं तब बड़ी महत्वपूर्ण घटना घटती है।
हां, वह यह पूछ रहे हैं कि कभी-कभी मन और हृदय, विचार और भाव एक नहीं हो जाते?
हो जाते हैं। बहुत गहरे में तो एक होते ही हैं। बहुत ऊपर ही अलग-अलग होते हैं। जैसे वृक्ष की शाखाएं ऊपर अलग-अलग होती हैं और नीचे पींड में एक हो जाती हैं। ऐसा ही विचार भी हमारी एक शाखा है हमारे होने की। भाव भी हमारी एक शाखा है, हमारे होने की। ऊपर-ही-ऊपर अलग-अलग होते हैं, बहुत गहरे में तो एक होते हैं। और जिस दिन हम यह जान लेते हैं कि विचार और भाव एक हैं, उस दिन विज्ञान और धर्म दो नहीं रह जाते। उस दिन विज्ञान की एक सीमा हो जाती है, और एक अतिक्रमण का जगत भी हो जाता है जहां धर्म शुरू होता है।
कृष्ण धर्मपुरुष हैं। और मैं उन्हें धर्मपुरुष की तरह ही बात कर रहा हूं। और जैसे वे मुझे दिखाई पड़ते हैं वैसी ही मैं बात कर रहा हूं। उसमें आप उन्हें वैसा मानकर चलेंगे, ऐसा आग्रह जरा भी नहीं है। मुझे जैसा दिखाई पड़ते हैं, उसमें से अगर थोड़ा-सा भी आपको दिखाई पड़ा, तो वह आपको बदलनेवाला सिद्ध हो सकता है।
ओशो रजनीश
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