श्री कृष्ण स्मृति 55

 "हनुमान नर्तन करते हैं कभी-कभी?'


नर्तन कर सकते हैं। नर्तन कर सकते हैं, बंगले के बगीचे पर जब हवा बहती है तो उसके पौधे भी नाचते हैं। और गमले में लगे पौधे पर भी जब हवा बहती है, तो वह भी डोलता है। लेकिन जंगल में तांडव चलता है। उसकी बात ही और है। हम उससे ही तो घबड़ाते हैं। वह नर्तन विराट है, हमारे "कंट्रोल' के बाहर है। यह नर्तन हमारे भीतर है। हनुमान नर्तन करते हैं, लेकिन राम की आज्ञा मान लेंगे। मीरा नर्तन करती है और कृष्ण भी अगर रोकें तो नहीं रुकेगी। फर्क बड़े बुनियादी हैं। मीरा कृष्ण को भी डांट-डपट देगी। हनुमान न डांट-डपट सकेंगे। मीरा कृष्ण को भी कह देगी, बैठे एक तरफ, हटो रास्ते से, नाच चलने दो, बीच में मत आओ। वह हनुमान न कर सकेंगे। हनुमान एक आज्ञाकारी व्यक्ति हैं, एक "डिसिप्लिंड' आदमी हैं।

दुनिया में "डिसिप्लिन' की जरूरत है, बिलकुल है। अनुशासन की जरूरत है। लेकिन, जीवन में जो भी विराट है, जो भी गहन-गंभीर है, वह सब अनुशासनमुक्त है। वह जीवन में जो भी सुंदर है, सत्य है, शिव है, वह बिना किसी अनुशासन के अचानक फूट पड़ता है। तो मुझे तो जैसा दिखाई पड़ा, वह मैंने कहा है। ऐसे हनुमान हैं, ऐसी मीरा है। मेरे देखे में चुनाव मेरा मीरा का है, आपसे नहीं कहता। और भिन्नता कहता हूं। हीनता और श्रेष्ठता क्या है, वह हरेक व्यक्ति अपनी तय करेगा। अपने से ही तय होगी वह। किसी को हनुमान श्रेष्ठ दिखाई पड़ सकते हैं। उससे वह सिर्फ इतनी ही खबर देगा कि उसकी श्रेष्ठता का मापदंड क्या है? और जब मैं कहता हूं कि मीरा कहीं श्रेष्ठ दिखाई पड़ती है तो उसका कुल मतलब इतना है कि मेरी श्रेष्ठता का अर्थ क्या है? इसमें हनुमान और मीरा गौण हैं, खूंटियों की तरह हैं, मैं अपने को उन पर टांगता हूं।

ओशो रजनीश



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