श्री कृष्ण स्मृति भाग 56

 "भगवान श्रीश्रीकृष्ण की गो-भक्ति को आप किस दृष्टि से देखते हैंउत्क्रांति की प्रक्रिया में डार्विन के वानर को मनुष्य-देह का पूर्वगामी और आत्मा के विकास में आपके अनुसार गो-माता को पूर्वगामी मानने को अगर राजी होंतो स्पष्ट नहीं होता कि समस्त पशुजाति में गाय ही आत्मा के साथ क्या ताल्लुक रखती है! क्या कृषि-प्रधान देश होने के कारण हम गाय को माता कहते हैंगो-वध के संबंध में आपका क्या खयाल है?'


चार्ल्स डार्विन ने जब सबसे पहले यह बात कही कि आदमियों के शरीर को देखकर ऐसा मालूम पड़ता है कि वह बंदरों की ही किसी जाति की शृंखला की आगे की कड़ी हैतो स्वीकार करना बहुत मुश्किल हुआ था। क्योंकि जो आदमी परमात्मा को अपना पिता मानता रहा होवह आदमी अचानक बंदर को अपना पिता मानने को राजी हो जाएयह कठिन था। एकदम परमात्मा की जगह बंदर बैठ जाएतो अहंकार को बड़ी गहरी चोट थी। लेकिन कोई रास्ता न था। डार्विन जो कह रहा थाप्रबल प्रमाण थे। डार्विन जो कह रहा था उसके लिए समस्त वैज्ञानिक साधन सहारा दे रहे थे। इसलिए विरोध तो बहुत हुआलेकिन धीरे-धीरे स्वीकार कर लेना पड़ा। इसके सिवाय कोई रास्ता नहीं था।
बंदर के शरीर और आदमी के शरीर में इतनी ही निकटता हैबंदर की बुद्धि और आदमी की बुद्धि में भी इतनी ही निकटता हैबंदर के जीने और होने के ढंग और आदमी के जीने और होने के ढंग में भी इतनी निकटता है कि यह इनकार करना मुश्किल है कि आदमी किसी-न-किसी रूप में बंदर की कड़ियों से जुड़ा हुआ है। आज भी जब हम रास्ते पर चलते हैं तो हमारे बायें पैर के साथ दायां हाथ हिलता है। जरूरत नहीं है अब कोई, "मोशनके लिए कोई जरूरत नहीं है। आप दोनों हाथ बिलकुल रोक कर चलें तो भी चल सकते हैं। दोनों हाथ कट जाते हैं तो भी आदमी इतनी ही गति से चलता है। लेकिन बायें पैर के साथ दायें हाथ का हिलनाडार्विन कहेगाबंदर जब चारों हाथ-पैर से चलता थातब की आदत हैवह छूटती नहीं। वह अभी भी आप जब चलते हैंतो बसउल्टे हाथ के साथ उल्टा पैर जुड़ जाता है। वह चार हाथ-पैर से कभी-न-कभी मनुष्य जाति का कोई पूर्वज चलता रहा है। अन्यथा इसका कोई कारण नहीं है। जहां बंदर की पूंछ हैवहां वह अभी खाली जगह हमारे पास हैसबके पास हैजहां पूंछ होनी चाहिए थीलेकिन अब है नहीं। वह हड्डीजहां पूंछ जुड़ी होनी चाहिए थीवह "लिंकेजहमारे शरीर में है। पूंछ तो नहीं हैलेकिन वह "लिंकेजहै। वह खबर देती है कि कभी पूंछ रही होगी।
इस लिहाज से हनुमान बड़े कीमती आदमी हैं। डार्विन को कुछ पता नहीं था हनुमान कानहीं तो बड़ा प्रसन्न होता। अगर उसको हनुमान का पता चलतातो वह बड़ा प्रसन्न होता। क्योंकि हनुमान का बंदर होनाऐसा मालूम पड़ता है कि हनुमान उस बीच-कड़ी के आदमी होंगेजब वह पूरे बंदर भी नहीं रह गए थेपूरे आदमी भी नहीं हो गए थे। कहीं "लिंकेजबीच की होनी चाहिए। हां, "ट्रांजिटरी पीरियडके आदमी होने चाहिए। क्योंकि बंदर एकदम से आदमी नहीं हो गए होंगेलाखों साल तक बंदर आदमी होते रहे होंगे। कुछ चीजें गिरती गई होंगीकुछ बढ़ती गई होंगी। लाखों साल में ऐसा हुआ होगा कि कड़ी टूट गईकुछ बंदर बंदर रह गए और कुछ आदमी हो गए और बीच का हिस्सा गिर गया। वह जो बीच का हिस्सा गिर गयाहनुमान उसी के कहीं-न-कहीं प्रतीक हैं। वह जो बीच का हिस्साअब उपलब्ध नहीं है--उसको खोजा जा रहा है बहुतऔर सारी जमीन पर हजार तरह कीलाख तरह की खोजें चलती हैं कि हम उस बीच की कड़ी की हड्डियों को खोज लें जो आदमी और बंदर के बीच में रही होंगी। हनुमान की हड्डियां कहीं मिल जाएं तो काम आ सकती हैं। डार्विन ने जब यह कहातो कठिन हुआ थालेकिन धीरे-धीरे स्वीकृत हुआ। क्योंकि प्रमाण प्रबल थे और पक्ष में थे। मैं एक दूसरी बात भी कहता हूंऔर वह मैं यह कहता हूं कि आदमी के शरीर का जहां तक विकास हैआदमी का शरीर बंदर के विकास की अगली कड़ी हैलेकिन जहां तक आदमी की आत्मा का संबंध हैवहां तक आदमी की आत्मा गाय की आत्मा की अगली कड़ी है। आदमी के पास आत्मा की जो यात्रा है वह तो गाय से होकर आई है और शरीर की जो यात्रा हैवह बंदर से होकर आई है। निश्चित ही जैसे प्रमाण डार्विन बंदर से आदमी होने के लिए जुटा सकता हैठीक वैसे प्रमाण इस बात के लिए नहीं जुटाए जा सकतेलेकिन दूसरे तरह के प्रमाण जुटाए जा सकते हैं।
गाय को मां कहने का कारण सिर्फ कृषि करने वाला देश नहीं है। क्योंकि बैल को हमने पिता नहीं कहा। गाय को मां कहने का कारण सिर्फ गाय की कृषि-प्रधान देश में उपादेयता और उपयोगिता मात्र नहीं है। अगर यह सिर्फ उपादेयता होतीतो उपादेय चीजों को हम मां नहीं बना लेते हैं! कोई कारण नहीं है। रेलगाड़ी को कोई मां नहीं कहताबहुत उपादेय है। और रेलगाड़ी के बिना एक क्षण नहीं चला जा सकता। हवाई जहाज को कोई मां नहीं बना लेता। बहुत उपादेय है। दुनिया में उपादेय के लिए कुछ-न-कुछ रही हैंजिनकी "यूटिलिटीरही हैलेकिन जिस चीज की "यूटिलिटीहोउसको मां कहने का क्या संबंध है? "यूटिलिटीहो तो ठीक हैमां कहने का कोई वास्ता नहीं है। मां कहने के पीछे कोई और कारण है।
वह कारणमेरे अपने अनुभव मेंजैसे बंदर पिता है डार्विन के हिसाब सेवैसे गाय मां है। यह किन आधारों पर मैं कहता हूंइसके सारे आधार "साइकिक रिसर्चके ही आधार हो सकते हैं। मनस कीऔर "जाति-स्मरणके आधार हो सकते हैं। हजारों योगियों ने निरंतर इस पर प्रयोग करके यह अनुभव किया कि वह जितने पीछे लौटते हैंजब तक याद आती हैतब तक मनुष्य के जन्म होते हैंलेकिन मनुष्यों के जन्मों के पीछे जो स्मरण आना शुरू होता हैवह गाय का जन्म शुरू हो जाता है। अगर आप अपने पिछले जन्मों की स्मृति में उतरेंगेतो बहुत से जन्म तो मनुष्य के होंगे--सबकेकुछ के कमकुछ के ज्यादा--यह "जाति-स्मरणके परिणामों का फल है। जिन लोगों ने "जाति-स्मरणपर प्रयोग किएअपने पिछले जन्म की स्मृतियों की खोजबीन कीउन्होंने पाया कि आदमी की स्मृतियों के बाद जो पहली पर्त मिलती हैवह पर्त गाय की स्मृति की है। इस गाय की स्मृति के आधार पर गाय को मां कहा गया।
ऐसे भीअगर हम सारे पशु-जगत में खोजने जाएंतो गाय के पास जैसी आत्मा दिखाई पड़ती हैवैसी किसी दूसरे पशु के पास दिखाई नहीं पड़ती। अगर हम गाय की आंख में झांकेंतो जैसी मानवीयता गाय की आंख में झलकती है वैसी मानवीयता किसी दूसरे पशु की आंख में नहीं झलकती। जैसी सरलताजैसी विनम्रता गाय में दिखाई पड़ती है वैसी किसी दूसरे पशु में नहीं दिखाई पड़ती है। आत्मिक दृष्टि से गाय विकसिततम मालूम पड़ती हैसमस्त पशु-जगत में। उसकी आत्मिक गुणवत्ता साफ स्पष्ट रूप से सर्वाधिक विकसित मालूम पड़ती है। उसका यह जो विकसित होना हैयह भी प्रमाण बन सकता हैखयाल दे सकता है कि अगला चरण गाय का जो होगावह आत्मिक छलांग का होगा। बंदर की अगर हम शारीरिक बेचैनी समझेंतो हमें खयाल में आ सकता है कि यह जल्दी अपने शरीर के बाहर छलांग लगाएगा। यह रुक नहीं सकता। यह इसी शरीर से राजी नहीं हो सकता। बंदर राजी ही नहीं है किसी चीज से। वह पूरे वक्त बेचैन और चंचल और परेशान है। आपने ध्यान कियाजब बच्चे पैदा होते हैं तो उनकी आंखों में गाय का भाव होता है और शरीर में बंदर की व्यवस्था होती है। छोटे बच्चे को देखेंतो शरीर तो उसके पास बिलकुल निपट बंदर का होता हैलेकिन आंख में झांकें तो गाय की आंख होती है।
इसलिए मैं कहता हूं कि गाय को मां कहने का कारण है। यह सिर्फ कृषि-प्रधान होने की वजह से ऐसा नहीं हुआ। इसके "साइकिक', इसके बहुत मानसिक खोजों का कारण है। अब दुनिया में जब "साइकिक रिसर्चबढ़ती चली जाती हैतो मैं नहीं समझता हूं कि बहुत देर लगेगी कि इस देश की इस खोज को समर्थन विज्ञान से मिल जाए। बहुत देर नहीं लगेगीसमर्थन मिल जाएगा।
कठिनाई क्या होती है?
अगर हम हिंदुओं के अवतार देखें तो हमें खयाल में आ सकता है। हिंदुओं का अवतार मछली से शुरू होता है और बुद्ध तक चला जाता है। पहले यह बात बड़ी मुश्किल की थी कि मछली का अवतार! मत्स्य का अवतार! पागल तो नहीं हैं आप! लेकिन अब जब विज्ञान और जीवशास्त्र कहता है कि जीवन का पहला अस्तित्व मछली से शुरू हुआतब हमें बड़ी मुश्किल पड़ जाती है। अब आज मजाक नहीं उड़ा सकते इस बात का। आज इस बात का मजाक उड़ाना मुश्किल हो गयाक्योंकि विज्ञान कहने लगा। और विज्ञान की कुछ ऐसी छाप है हमारे मन पर कि फिर हम मजाक नहीं उड़ा सकते। विज्ञान कहता है कि मछली ही शायद पहला जीवन का विकसित रूप है। फिर मछली से ही सारा विकास हुआ। मछली इस देश ने पहला अवतार माना है--अवतार का कुल मतलब होता हैचेतना का अवतरण। शायद मछली पर जीवन-चेतना पहली बार उतरी। इसलिए मछली को अवतार कहने में बुरा नहीं है। यह भाषा धर्म की है। और जब विज्ञान कहता है कि मछली पहला जीवन मालूम पड़ती हैतब भाषा उसके पास विज्ञान की हो जाती है। हमारे पास एक अवतार और भी अदभुत है--नरसिंह अवतार। जो आधा पशु और आधा मनुष्य का अवतार है। जब डार्विन कहता है कि बीच में कड़ियां रही होंगी जो आधी पशुता की और आधी मनुष्यता की रही होंगीतब हमें कठिनाई नहीं होतीलेकिन नरसिंह अवतार को पकड़ने में कठिनाई होती है। वह भाषा धर्म की है। लेकिन उसके भी पीछे गहन अंतर्दृष्टियां समाविष्ट हैं।
गाय मां हैउन्हीं अर्थों मेंजिन अर्थों में बंदर पिता है। और डार्विन ने फिक्र की शरीर कीक्योंकि पश्चिम शरीर की चिंता में संलग्न है। इस देश ने फिक्र की आत्मा कीक्योंकि यह देश आत्मा की चिंता में संलग्न है। इस देश को इसकी बहुत फिक्र नहीं रही कि शरीर कहां से आता है--कहीं से भी आता होलेकिन आत्मा कहां से आती हैयह हम जरूर जानना चाहते रहे हैं। इसलिए हमारी "एम्फेसिसशरीर के विकास पर न होकर आत्मा के विकास पर गई है।
दूसरी बात पूछी है कि गो-वध के संबंध में मेरा क्या खयाल है?
मैं किसी वध के पक्ष में नहीं हूं। तो गो-वध के पक्ष में होने की तो बात ही नहीं उठती। लेकिन मैं पक्ष में हूं या नहींइससे वध रुकेगा नहीं। परिस्थितियां गो-वध कराती ही रहेंगी। मैं मांसाहार के पक्ष में नहीं हूं। लेकिनमांसाहार के पक्ष में हूं या नहींइससे फर्क नहीं पड़ता। परिस्थितियां ऐसी हैं कि मांसाहार जारी रहेगा। जारी इसलिए रहेगा कि आज भी हम इस स्थिति में नहीं हो पाए कि शाकाहारी भोजन सारे जगत को दे सकें। सारा जगत तो बहुत दूर हैअगर एक मुल्क भी पूरा शाकाहारी होने का निर्णय कर लेतो मर जाएगा। शाकाहारी होने के लिए जो सारी व्यवस्था हमें जुटानी चाहिएवह हम जुटा नहीं पाए। इसलिए मांसाहार मजबूरी की तरह जारी रहेगा, "नेसेसरी इविलकी तरह। गो-वध भी जारी रहेगा "नेसेसरी इविलकी तरह।
और बड़े मजे की बात यह है कि जो लोग गो-वध बंद हो इसके लिए आतुर हैंवह गो-वध से जो मिलता है लोगों कोउसको देने के लिए उनकी कोई चेष्टा नहीं है। गो-वध किसी दिन बंद हो सकेगाहो सकता है। और मैं मानता हूं कि वह गो-वध भी बंद उनकी वजह से होगा जो गो-वध बंद करने के बिलकुल पक्ष में नहीं हैं। यह गो-वध बंद करने वाले लोगों की वजह से बंद नहीं होने वाला हैक्योंकि बंद करने की वह कोई व्यवस्था नहीं जुटा पाते। बस सिर्फ नारेबाजीया कानूनया नियमइनसे कुछ होने वाला नहीं है। आज भी जमीन पर सर्वाधिक गायें हमारे पास हैंऔर सबसे कमजोर और सबसे मरीज। जिनके पास बहुत कम गायें  हैं और जो बहुत गो-वध करते हैंउनके पास बड़ी स्वस्थबड़ी जीवंत गायें हैं। एक-एक गाय भी चालीस किलो दूध दे सके। हमारी गाय आधा किलो भी दे तो भी बड़ी कृपा है! इन अस्थिपंजरों को हम जिंदा रखने की कोशिश में लगे हैं। इनको जिंदा रखने की कोशिश "इनडायरेक्टही हो सकती है। भोजन के अतिरिक्त साधन इकट्ठे करने जरूरी हैं। अभी तक भी शाकाहारी ठीक से मांसाहारी के योग्य भोजन का उत्तर नहीं दे पाए हैं। उनकी बात सही हैउनका तर्क उचित है।
यह बड़े मजे की बात है कि गाय भी गैर-मांसाहारी है और बंदर भी गैर-मांसाहारी है। शरीर भी आदमी का जहां से आया है वह गैर मांसाहारी प्राणी से आया हैऔर आत्मा भी जहां से आई है वह भी गैर-मांसाहारी प्राणी से आई है। छोटी-मोटी चींटियों वगैरह को बंदर कभी खा गएबात अलगऐसे मांसाहारी नहीं है। गाय तो मांसाहारी है ही नहीं। मजबूरी में मांस खा जाएबात अलगखिला दे कोई बात अलग। ये दोनों यात्रापथ गैर-मांसाहारी हैं और आदमी मांसाहारी क्यों हो गयाआदमी के शरीर की पूरी व्यवस्था गैर-मांसाहारी है। उसके पेट की अस्थियों का ढांचा गैर-मांसाहारी का है। उसके चित्त के सोचने का ढंग गैर-मांसाहारी का है। लेकिन आदमी मांसाहारी क्यों हैंमांसाहार आदमी की मजबूरी हैमांसाहारी होना। अभी तक शाकाहार का हम पूरा भोजन नहीं जुटा पाए।
इसलिए मेरी अपनी समझ मेंगो-वध जारी रहेगा। जारी नहीं रहना चाहिए। जारी रखना पड़ेगा। जारी नहीं रखना चाहिएऔर सिर्फ उसी दिन रुक सकेगा जिस दिन हम "सिंथेटिक फूडपर आदमी को ले जाने के लिए राजी हो जाएं। उसके पहले नहीं रुक सकता है। जिस दिन हम भोजन के मामले में वैज्ञानिक भोजन पर आदमी को ले जाएंउस दिन रुक सकेगा। इसलिए मेरी चेष्टा गो-वध बंद होन होइसमें जरा भी नहीं है। यह सब बिलकुल फिजूल बातें हैंजिनको चलाकर हम समय खराब करते हैं और कुछ होता नहींहो सकता नहीं। मेरी चिंता इसमें है कि आदमी को हम ऐसा भोजन दे सकें जो उसे मांसाहार से मुक्त कर सके। "सिंथेटिक फूडके बिना अब पृथ्वी में पर कोई रास्ता नहीं है। अब जमीन से पैदा हुआ भोजन काम नहीं कर सकेगाअब तो हमें फैक्ट्री में बनाई गई गोली भोजन के लिए उपयोग में लानी पड़ेगी। साढ़े तीन अरब और चार अरब के बीच संख्या डोलने लगी है मनुष्य की। इस संख्या के लिए भोजन का कोई उपाय नहीं। और यह संख्या रोज बढ़ती जाएगीहमारे सब उपाय के बावजूद बढ़ती जाएगी। और गो-वध तो बहुत दूर की बात हैहो सकता है तीस-चालीस साल के भीतर आंदोलन शुरू करना पड़े कि नर-वध किया जाएआदमी को खाया जाए। जैसे आज एक आदमी मरता है तो हम उससे कहते हैं कि अपनी आंख "डोनेटकर दोहम मरते हुए आदमी से कहेंगेअपना मांस "डोनेटकर जाओ। और कोई उपाय नहीं रह जाएगा। संख्या इतनी तीव्र होगी तो इसके सिवा कोई उपाय नहीं रह जाएगा। और जो आदमी अपना मांस "डोनेटकर जाएगाउसकी हम इज्जत करेंगेजैसे अभी हम आंख वाले की करते हैं। वह कह जाएगा कि मरने के पहले तुम मुझे काट-पीटकर खा लेना। बहुत जल्दी वह वक्त आ जाएगा कि जो कौमें लोगों को जलाती हैंलाशों कोवह अनुचित और अन्यायपूर्ण मालूम होने लगेगा। और ऐसा कोई आज ही हो गयाऐसा नहींमनुष्य को खाने वाली जातियां थींजिनके पास कुछ और खाने को न थावह मनुष्य को खाती रही हैं। यहां मनुष्य को खाने की स्थिति करीब आई जाती हैवहां हम आंदोलन चलाए जाते हैं गो-वध को रोकने का। यह नहीं चलेगाइसमें कोई वैज्ञानिकता नहीं है।
लेकिन गो-वध रुक सकता हैसभी वध रुक सकते हैं। हमें भोजन के संबंध में बड़े क्रांतिकारी कदम उठाने की जरूरत है। गो-वध के मैं पक्ष में नहीं हूंलेकिन गो-वध विरोधियों के भी पक्ष में नहीं हूं। गो-वध विरोधी निपट नासमझी की बातें करते हैं। उनके पास कोई बहुत बड़ी योजना नहीं है जिससे कि गो-वध रुक सके। रुक तो जाना चाहिए। गऊ आखिरी जानवर होना चाहिए जो मारा जाए। वह विकास की पशुओं में आखिरीमनुष्य के पहले की कड़ी है। उस पर दया होनी जरूरी है। उससे हमारे बहुत आंतरिक संबंध हैं। उनका ध्यान रखना जरूरी है। लेकिनयह ध्यान तक तक ही रखा जा सकता है जब सुविधा हो सकेअन्यथा नहीं रखा जा सकता है। एक छोटी-सी कहानी मैं कहूं--
परसों ही रास्ते में मैं कह रहा था। एक पादरी एक चर्च में व्याख्यान करने को गया है। कोई तीन-चार मील का फासला है और पहाड़ी रास्ता हैऊंचा-नीचा रास्ता हैबूढ़ा पादरी है। उसने गांव के अपने एक तांगेवाले को कहा कि मुझे वहां तक पहुंचा दोजो तुम पैसे लोले लेना। उस तांगेवाले ने कहा कि ठीक हैपैसे तो ठीक हैंलेकिन मेरा बूढ़ा घोड़ा है गफ्फारउसका जरा ध्यान रखना पड़ेगा। तो उसने कहायह तो ठीक ही हैतुम जितनी दया घोड़े पर करते होउससे कम मैं नहीं करता। घोड़े का ध्यान रखा जाएगा।
फिर यात्रा शुरू हुई। कोई आधा मील बीतने के बाद ही चढ़ाई शुरू हुईतो उस तांगेवाले ने कहाअब कृपा करके आप नीचे उतर जाएं। घोड़ा बूढ़ा हैऔर ध्यान रखना जरूरी है। पादरी नीचे उतर गया। फिर ऐसा ही चलता रहा। घाट आतापादरी को नीचे उतरना पड़ता। कभी-कभी घाट और ज्यादा आ जातातो तांगेवाले को भी नीचे उतरना पड़ता। चार मील के रास्ते पर मुश्किल से एक मील पादरी तांगे में बैठातीन मील नीचे चला। और जो असली जगह जहां तांगे की जरूरत थी वहां पैदल चला और जहां तांगे की जरूरत नहीं थी वहां तांगे में बैठा। जब वे चर्च के पास पहुंच गए और तांगेवाले को पादरी ने पैसे चुकाए तो उसने कहा पैसे तो तुम लोलेकिन एक सवाल का जवाब देते जाओ। मैं तो यहां भाषण देने आयासमझ में आता है। तुम पैसा कमाने आएवह भी समझ में आता है। गफ्फार को किसलिए लाए होहम दोनों आते तो भी आसान पड़ता। इस बेचारे गफ्फार को किसलिए लाए हो?
जीवन आवश्यकताओं में जिआ जाता हैसिद्धांतों में नहीं। आदमी मरने के करीब हैगाय नहीं बचाई जा सकती। गाय बचाई जा सकती हैआदमी इतने "एफयुलेंसमें हो जाए कि गाय को बचाना "एफॅर्डकर सके। फिर गाय भी बचाई जा सकती है। फिर और जानवर भी बचाए जा सकते हैं। क्योंकि गाय अगर एक कड़ी पीछे हैतो दूसरे जानवर थोड़ी और कड़ी पीछे हैं। मछली भी मां तो हैजरा रिश्ता दूर का है। और तो कुछ बात नहीं है। अगर गाय मां हैतो मछली मां क्यों नहीं हैजरा रिश्ता दूर का हैबस इतना ही फर्क है। लेकिन जैसे-जैसे आदमी समृद्ध होता चला जाएसुविधा जुटाता जाएवह गाय को ही क्यों बचाएगावह मछली को भी बचाएगा
बचाने की दृष्टि तो साफ होनी चाहिए। लेकिन बचाने का आग्रह सुविधाएं न हों तो मूढ़तापूर्ण हो जाता है।
ओशो रजनीश



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