श्री कृष्ण स्मृति भाग 59

 "भगवान श्री, कृष्ण के जमाने में एक पौंड्रक नामक राजा था, जो साक्षात कृष्ण को नकली कृष्ण जाहिर कर अपने को असली कृष्ण मानता था और बताता था। बुद्ध, महावीर आदि अवतारों के जीवन में, क्राइस्ट के चरित्र में ऐसी साम्य रखने वाली कुछ घटनाएं घटी हैं?'


हां, घटी है। महावीर के समय गोशालक नाम के व्यक्ति ने घोषणा की कि असली तीर्थंकर मैं हूं। महावीर असली तीर्थंकर नहीं हैं।

और क्राइस्ट के समय में भी घटी, क्योंकि यहूदियों ने सूली ही इसलिए दी कि यह बढ़ई का लड़का नाहक अपने को क्राइस्ट कह रहा है, यह असली क्राइस्ट नहीं है। अभी असली क्राइस्ट पैदा होने वाला है। यहूदी-परंपरा में ऐसा खयाल था कि क्राइस्ट नाम का एक पैगंबर पैदा होने वाला है। बहुत "प्रॉफेट्स' ने उसकी घोषणा की थी। इजेकियल ने घोषणा की थी, ईसिया ने घोषणा की थी, उन सब पुराने पैगंबरों ने घोषणा की थी कि क्राइस्ट नाम का एक पैगंबर आने वाला है। फिर क्राइस्ट के ठीक जन्म लेने के पहले बपतिस्मा वाले जॉन ने गांव-गांव घूमकर घोषणा की थी कि क्राइस्ट आने वाला है। क्राइस्ट का मतलब, मसीहा। मसीहा आने वाला है, जो सबका उद्धार करेगा। और फिर एक दिन जीसस नाम के इस जवान ने घोषणा कर दी कि मैं वह मसीहा हूं। यहूदियों ने मानने से इनकार कर दिया, कि यह आदमी वह मसीहा नहीं है। इसलिए सूली दी गई। सूली दी गई कि तुम झूठी घोषणा कर रहे हो। तुम मसीहा नहीं हो।

दूसरे व्यक्ति ने ठीक जीसस के सामने दावा नहीं किया। लेकिन बहुत लोगों ने यह दावा किया कि तुम मसीहा नहीं हो, तुम क्राइस्ट नहीं हो। हम तुम्हें क्राइस्ट मानने से इनकार करते हैं। क्यों इनकार किया? क्योंकि वे कहते थे, कुछ लक्षण हैं, जो कि तुम पूरे करो। कुछ चमत्कार हैं, जो तुम दिखाओ। उनमें एक चमत्कार यह भी था कि जब हम तुम्हें सूली लगाएं, तो तुम जिंदा सूली से उतर आओ। तो जीसस के जो भक्त थे, वे मानते थे कि सूली लग जाने के बाद जीसस उतर आएंगे जीवित और चमत्कार घटित हो जाएगा, और फिर लोग मान लेंगे। अब बड़ी मुश्किल है तय करना यह बात, क्योंकि जीसस के भक्त अब भी कहते हैं कि तीन दिन बाद वे देखे गए। लेकिन जिन्होंने देखा वे दो औरतें थीं, दो स्त्रियां थीं, जो जीसस को बहुत प्रेम करती थीं, उन्होंने उन्हें देखा। विरोधी उनके वक्तव्य को मानने को तैयार नहीं हैं। विरोधियों का खयाल है कि वे इतनी प्रेम से भरी थीं कि जीसस उन्हें दिखाई पड़ सकते हैं, और जीसस न हों। लेकिन कोई यहूदी वक्तव्य ऐसा नहीं है कि जीसस उतर आए सूली से और प्रमाण उन्होंने दे दिया, वह प्रमाण नहीं दिया जा सका। इसलिए उस क्राइस्ट की प्रतीक्षा तो यहूदी अभी भी करते हैं, जिसकी घोषणा पैगंबरों ने की है।

लेकिन महावीर के वक्त में तो बहुत ही स्पष्ट गोशालक ने घोषणा की कि मैं असली तीर्थंकर हूं, महावीर असली तीर्थंकर नहीं हैं। गोशालक को भी मानने वाले लोग थे। थोड़ी संख्या न थी, काफी संख्या थी। और यह विवाद लंबा चला कि कौन असली तीर्थंकर है। क्योंकि जैन-परंपरा में घोषणा थी कि चौबीसवां तीर्थंकर आने वाला है। वह अंतिम तीर्थंकर होने को था, तेईस हो चुके थे, और अब एक ही आदमी तीर्थंकर हो सकता था। और न केवल गोशालक ने घोषणा की कि वह चौबीसवां तीर्थंकर है, एक बड़ा वर्ग था जो उसे चौबीसवां तीर्थंकर मानता था।

यह तो था ही, और भी पांच-छः लोग थे जिनको कुछ लोग मानते थे वही असली तीर्थंकर हैं, हालांकि उन्होंने कभी घोषणा नहीं की। मक्खली गोशालक तो स्वयं घोषणा करता था कि वह तीर्थंकर है। लेकिन संजय वेलट्ठीपुत्त, अजित केसकंबल, इनके भी भक्त थे; जो मानते थे कि ये असली तीर्थंकर हैं। ऐसा बुद्ध को जो मानते थे उनका भी खयाल था कि असली तीर्थंकर बुद्ध हैं। और बुद्ध के मानने वालों ने महावीर का बहुत मजाक उड़ाया।

इसकी बहुत संभावना है। सदा संभावना है कि कृष्ण जैसा व्यक्ति जब पैदा हो, या जब समाज ऐसे व्यक्ति की किन्हीं घोषणाओं के आधार पर प्रतीक्षा कर रहा हो, तो कोई और लोग भी दावेदार हो जाएं। इसमें बहुत कठिनाई नहीं है। लेकिन समय तय कर देता है कि दावेदार सही थे कि नहीं थे। सच तो यह है कि जब कोई दावा करता है, तभी वह कह देता है कि वह सही आदमी नहीं है। दावेदारी ही गलत आदमी करता है। कृष्ण को दावा करने की जरूरत नहीं है कि मैं, कृष्ण वह हैं। किसी को दावे की जरूरत पड़ती है, उसका मतलब यह है कि उसके होने से सिद्ध नहीं होता कि वह कृष्ण है, उसे दावा भी करना पड़ता है। उसे खुद ही शक है। असल में हमारी आत्महीनता ही दावा बनती है। अगर कोई आदमी दावा करता है कि मैं महात्मा हूं, तो उसका दावा ही कहता है कि वह महात्मा नहीं होगा। दावेदारी हमेशा उलटी खबर देती है।

लेकिन वह बिलकुल स्वाभाविक है, मानवीय है कि कोई दावा कर सके। इसमें बहुत कठिनाई नहीं है।

ओशो रजनीश



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