श्री कृष्ण स्मृति भाग 62
"भगवान श्री, नौ सौ निन्यानबे गाली सहने वाले कृष्ण उससे आगे की एक भी गाली को न सुन सके और चक्र से शिशुपाल का वध कर बैठे। इससे क्या यह तय नहीं होता कि पहले दी गई गालियों को भी सिर्फ वे प्रकट रूप से ही सह रहे थे और अंतर में तो असहिष्णु ही थे?'
ऐसा सोचा जा सकता है, क्योंकि ऐसे हम सब हैं। अगर हम चौथी गाली पर बिगड़ उठते हैं, तो हम भलीभांति जानते हैं कि बिगड़ तो हम पहली ही गाली पर गए थे। लेकिन तीन दिन तक साहस रखा। तीन तक सहिष्णुता थी, फिर हम चूक गए, फिर हमारी सहिष्णुता और न सह सकी। तो चौथी गाली पर प्रगट हो गए। लेकिन इससे उलटा भी हो सकता है। और कृष्ण बड़े उलटे आदमी हैं। ठीक हमारे जैसे आदमी नहीं हैं। इसलिए उलटे होने की संभावना ही उन पर ज्यादा है।
ऐसा नहीं कि नौ सौ निन्यानबे गाली सहने तक उनकी सहिष्णुता थी। नौ सौ निन्यानबे गालियां काफी गालियां हैं। और जो नौ सौ निन्यानबे सह सकता होगा, वह हजारवीं नहीं सह सकता होगा, सोचना जरा मुश्किल है। बड़ा सवाल कृष्ण के लिए यह नहीं है कि उनकी सहिष्णुता चुक गई, बड़ा सवाल यह है कि अब सामने का जो आदमी है, अब उसकी सीमा आ गई। अब उसकी सीमा आ गई। अब इससे ज्यादा सहे जाना सहिष्णुता का सवाल नहीं है, इससे ज्यादा सहे जाना बुराई को बनाए रखने का सवाल है। इससे ज्यादा सहे जाना अब अधर्म को बचाना होगा। क्योंकि इतना तो बहुत ही साफ है कि नौ सौ निन्यानबे गालियां काफी हैं।
जीसस से कोई पूछता है एक शिष्य, कि कोई हमें एक बार चांटा मारे, तो हम क्या करें? तो जीसस कहते हैं, सहो। वह पूछता है कोई हमें सात बार चांटा मारे, तो हम क्या करें? तो जीसस कहते हैं, सात बार नहीं, सतहत्तर बार सहो। उस आदमी ने आगे पूछा नहीं, इसलिए हमें पता नहीं कि जीसस क्या कहते हैं। उसने आगे पूछा नहीं कि अठहत्तरवीं बार? लेकिन मैं मानता हूं कि जीसस कहते कि अठहत्तरवीं बार अब बिलकुल मत सहो। क्योंकि तुम्हारी सहिष्णुता ही काफी नहीं है, दूसरे आदमी का अधर्म भी विचारने योग्य है।
मैंने एक मजाक सुना है। मैंने सुना है कि जीसस को मानने वाला एक भक्त एक गांव से गुजरा है। और किसी ने एक चांटा उसके चेहरे पर मार दिया। तो जीसस का वचन है कि जब कोई तुम्हारे बायें गाल पर चांटा मारे तो दायां उसके सामने कर दो। उसने दायां गाल उसके सामने कर दिया। उस आदमी ने, जैसा कि उस बेचारे ने सोचा भी नहीं था, दायें पर भी चांटा और करारा मारा। तब वह बड़ी मुश्किल में पड़ा, क्योंकि इसके आगे जीसस का कोई वक्तव्य नहीं है, कि अब वह क्या करे? तो उसने उठाकर एक हाथ करारा उस दुश्मन को मारा। उस आदमी ने कहा कि अरे, तुम तो जीसस को मानते हो? और जीसस ने तो कहा कि जब कोई तुम्हारे एक गाल पर चांटा मारे तो दूसरा सामने कर दो। उसने कहा, लेकिन तीसरा कोई गाल नहीं है। और अब मैं छुट्टी लेता हूं जीसस से। क्योंकि दो गाल तक जीसस के साथ चला, तीसरा कोई गाल नहीं है। अब तीसरा गाल तुम्हारे पास है। उस आदमी ने कहा, अब तीसरा गाल तुम्हारे पास है। मेरे दोनों गाल चुक गए, अब तुम्हारे गाल पर ही चांटा पड़ सकता है। एक वक्त है जब तीसरा गाल आ जाता है।
उसमें कृष्ण नहीं चुक जाते। हमें ऐसा ही लगेगा, क्योंकि हम चुक जाते हैं जल्दी। उसमें कृष्ण नहीं चुक जाते। लेकिन सब चीजों की सीमाएं हैं और सीमाओं के आगे चीजों को सहे जाना खतरनाक है, अधर्म है। सीमाओं के आगे चीजों को सहे जाना बुराई को प्रोत्साहन है। अगर मैं सहिष्णु हूं, तो इसीलिए तो हूं न कि असहिष्णुता बुरी है। और तो कोई कारण नहीं है। सहिष्णु होने का यही तो अर्थ है कि असहिष्णुता बुरी है। लेकिन मैं तो बुरा होने से बच जाऊं और दूसरे को बुरा होते ही जाने दूं, यह दूसरे पर दया न हुई। यह दूसरे से अति कठोरता हो गई। एक जगह दूसरे को भी बुरा होने से रोकना ही पड़ेगा। ऐसा मैं देखता हूं।
कृष्ण के पूरे व्यक्तित्व को देखकर ऐसा लगता है कि उनकी सहिष्णुता को चुकाना बहुत मुश्किल है। लेकिन ऐसा भी लगता है कि बुराई को प्रोत्साहन देना उनके लिए असंभव है। इन दोनों के बीच कहीं उन्हें "गोल्डन मीन' खोजनी पड़ती है, कहीं उन्हें "स्वर्ण-नियम' खोजना पड़ता है जहां से आगे चीजें बदल जाती हैं।
ओशो रजनीश
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