श्री कृष्ण स्मृति भाग 10
"बुद्ध पूर्णता अर्थात महाशून्यता के बाद भी तो चालीस-बयालीस साल जीते हैं?'
बुद्ध जीते हैं। महावीर भी चालीस साल जीते हैं, बुद्ध भी चालीस साल, बयालीस साल जीते हैं। लेकिन बुद्ध कहते हैं मरने के पहले कि वह जो निर्वाण मुझे हुआ था चालीस साल पहले, वह निर्वाण था, अब जो हो रहा है, वह महानिर्वाण है। पहले निर्वाण में बुद्ध ने वही शून्य पाया था जो हमें दिखाई पड़ता है। दूसरे महानिर्वाण में बुद्ध उस शून्य को पाते हैं जो हमें दिखाई नहीं पड़ता, जो कृष्ण को दिखाई पड़ सकता है। तो बुद्ध तीस-चालीस साल जीते हैं। उस जीने में भी परम शून्य नहीं हैं। उस जीने में भी एक छोटी-सी बाधा तो है ही। उस जीने में भी अभी कष्ट है। अभी होना चल रहा है। इसलिए बुद्ध अगर गांव-गांव जा भी रहे हैं, तो वह करुणावश जा रहे हैं, आनंदवश नहीं। अगर वह दूसरे को समझा रहे हैं तो करुणा के कारण, कि जो मुझे मिला है मैं आपको भी कह दूं कि शायद आपको मिल जाए। लेकिन कृष्ण अगर दूसरे को कुछ कह रहे हैं, तो आनंद के कारण, वह कोई करुणा के कारण नहीं। कृष्ण में करुणा को न खोज पाओगे तुम।
बुद्ध का व्यक्तित्व "कम्पैसन' है। चालीस साल करुणावश वह जा रहे हैं, आ रहे हैं, लेकिन, वह आखिरी क्षण की प्रतीक्षा है जब यह आना-जाना भी छूट जाएगा। इससे भी मुक्ति होगी। इसलिए बुद्ध कहते हैं, दो तरह के निर्वाण हैं। एक निर्वाण वह है, जो समाधि से मिलता है। और एक महानिर्वाण है, जब कि शरीर भी खो जाता है--मन ही नहीं खोता है, शरीर भी खोता है। वही परम निर्वाण है। परम शून्य उससे ही मिलेगा।
कृष्ण के लिए ऐसा नहीं है। कृष्ण के लिए निर्वाण और महानिर्वाण दो नहीं हैं, एक ही हैं।
ओशो रजनीश
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