श्री कृष्ण स्मृति भाग 70

 "भगवान श्री, आपने कहा, "ब्लेसेड आर द मीक, फॉर देयर्स इज़ द किंग्डम ऑफ अर्थ।' लेकिन, "ब्लेसेड आर द प्योर इन हॉर्ट, फॉर देयर्स इज़ द किंग्डम ऑफ हेवन', इस संबंध में आप क्या कहते हैं?'


जीसस का दूसरा वचन भी है कि धन्य हैं वे जिनके हृदय पवित्र हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का होगा। इन दोनों वचनों में थोड़ा-सा फर्क है। धन्य हैं वे जो विनम्र हैं, पृथ्वी का राज्य उनका होगा, "किंग्डम ऑफ द अर्थ'। धन्य हैं वे जो पवित्र हैं, स्वर्ग का राज्य उनका होगा, "किंग्डम ऑफ द हेवन'। असल में विनम्रता जो है, वह शुरुआत है, पवित्रता जो है, वह अंत है। "हयुमिलिटी' प्रारंभ है, "प्यारिटी' उपलब्धि है। जो विनम्र हैं, वे पहली सीढ़ी पर गए। उन्होंने पवित्र होने के लिए द्वार खोला। वे अभी पवित्र हो नहीं गए। जो विनम्र हैं, उन्होंने पवित्र होने का द्वार खोला। जो विनम्र नहीं हैं, वे तो कभी पवित्र नहीं हो सकते। क्योंकि अहंकार से बड़ी और कोई अपवित्रता नहीं है। जो अहंकार से भरे हैं, वे तो कभी पवित्र नहीं हो सकते, लेकिन जो विनम्र हुए, जिन्होंने अहंकार छोड़ा, जो झुके, समर्पित हुए, उन्होंने पवित्र होने का द्वार खोला। लेकिन झुक जाना ही पा लेना नहीं है। आप झुक जाने से सिर्फ द्वार बने।

एक आदमी नदी के किनारे खड़ा है, नदी में खड़ा है, पानी नीचे बह रहा है, वह आदमी प्यासा है। वह झुक जाए तो पानी अंजुली में भर सकता है, लेकिन झुकने को वह राजी नहीं। वह अकड़कर खड़ा है। वह प्यासा है, पानी पैर के पास से बहा जाता है, लेकिन झुकने को वह राजी नहीं। खड़ा रहे प्यासा, नदी नीचे बहती रहेगी। नदी का कोई कसूर नहीं उसकी प्यास में। उस आदमी की अकड़ ही उसको प्यासा किए हुए है। झुकने की उसकी तैयारी नहीं। वह झुक जाए तो अंजुली में पानी आ जाए। झुकने से शुरुआत होगी। अंजुली में पानी आने का द्वार खुलेगा।

ठीक ऐसे ही जो विनम्र हैं, वे द्वार खोलते हैं अपनी पवित्रता के लिए, और जब वे पवित्र हो जाते हैं--विनम्रता सब तरह से पवित्र हो जाएगी। क्योंकि विनम्रता उन सब चीजों को काट देगी जिनसे आदमी अपवित्र होता है। विनम्र आदमी अहंकारी न रह जाएगा। विनम्र आदमी आक्रामक न रह जाएगा। विनम्र आदमी क्रोधी न रह जाएगा। विनम्र आदमी लोभी न रह जाएगा। विनम्र आदमी कामी न रह जाएगा। असल में इन सबमें आक्रमण जरूरी है। तो विनम्रता इन सबके लिए रास्ता नहीं रह जाएगी। विनम्र आदमी क्रोध की जगह क्षमा को उपलब्ध होने लगेगा। विनम्र आदमी लोभ की जगह दान को उपलब्ध होने लगेगा। विनम्र आदमी आक्रमण की जगह हारने की तैयारी दिखाने लगेगा। विनम्र आदमी परिग्रह की जगह अपरिग्रही होने लगेगा। विनम्र आदमी अपनी घोषणा करने की जगह अंधेरे और छाया में हटने लगेगा, अदृश्य होने लगेगा। जिस दिन विनम्रता पूरी हो जाएगी, उस दिन पवित्रता पूरी हो जाएगी। इसलिए दूसरे वचन में जीसस कहते हैं, "ब्लेसेड आर द प्योर, दे शैल इनहेरिट द किंग्डम ऑफ गॉड'। वे परमात्मा के राज्य के मालिक हो जाएंगे, जो पवित्र हैं।

एक और वचन है जीसस का इसी तरह का--"ब्लेसेड आर द पुअर इन स्प्रिट'। वे, जो आत्मा से दरिद्र हैं। बड़ा अजीब वाक्य है--"पुअर इन स्प्रिट'। उसमें दोनों बातें सम्मिलित हो गई हैं। उसमें विनम्रता और पवित्रता दोनों ही उस वचन में आ गईं। इतने गरीब हैं हम भीतर--अपवित्र होने के लिए कुछ तो चाहिए? कुछ बचा ही नहीं। "वैक्यूम' हो गए हैं। इतने गरीब हैं भीतर कि कुछ बचा ही नहीं। कुछ तो चाहिए? अविनम्र होने के लिए कुछ तो चाहिए? कुछ तो "पजेसन' होना चाहिए? कोई मालकियत होनी चाहिए? धन होना चाहिए, पद होना चाहिए, पदवी होना चाहिए, नाम होना चाहिए, यश होना चाहिए, कुछ तो होना चाहिए? अपवित्र होने के लिए भी कुछ तो होना चाहिए--क्रोध होना चाहिए। अब यह बड़े मजे की बात है कि क्रोध कुछ है, अक्रोध सिर्फ अभाव है। अक्रोध कुछ है नहीं। लोभ कुछ है, अलोभ सिर्फ "एब्सेंस' हैं, अभाव है। हिंसा कुछ है, अहिंसा सिर्फ अभाव है। इतना गरीब है आदमी भीतर कि न हिंसा है अब उसके पास, न क्रोध है उसके पास, न लोभ, न पद, न प्रतिष्ठा, न नाम, न धन, कुछ भी नहीं है, "पुअर इन स्प्रिट'। दीन-दरिद्र आत्मा से। लेकिन उसकी समृद्धि का कोई मुकाबला नहीं। इसलिए दूसरे वचन में वे कहते हैं कि सब कुछ का वह मालिक हो जाएगा। जो सबसे ज्यादा दीन हो गया है, भीतर वह सबका मालिक हो जाएगा, वह सब पा लेगा। सब जो पाने योग्य है, वह सब उसे मिल जाएगा।

जीसस का एक वचन है इसके संदर्भ में, जिसमें वह कहते हैं: "सीक यी फर्स्ट द किंग्डम ऑफ गॉड एंड आल एल्स शैल बी एडेड अनटू यू'। पहले तुम परमात्मा के राज्य को खोज लो और फिर सब तुम्हें मिल जाएगा। लेकिन जब उनसे कोई पूछता है, परमात्मा के राज्य को खोज लो और फिर सब तुम्हें मिल जाएगा। लेकिन जब उनसे कोई पूछता है, परमात्मा के राज्य को कैसे खोजें? तब वह कहते हैं, विनम्र हो जाओ, पवित्र हो जाओ, दरिद्र हो जाओ, तो परमात्मा का राज्य मिल जाएगा। और जब परमात्मा का राज्य मिल जाएगा, तो "आल एल्स शैल बी एडेड अनटू यू', और फिर सब, जो भी है, सब तुम्हें मिल जाएगा। उसके पीछे सब चला जाएगा। अजीब शर्त है। सब खो दो, तो सब पा लोगे। कुछ भी बचाया, तो सब खो दोगे। जो अपने को खोने को राजी हैं, वे सब पाने के मालिक हो जाएंगे, जो अपने को बचाने की जिद्द करेंगे, वे सब खो देंगे।

संन्यासी का यही अर्थ है मेरे मन में। जो सब खोने को राजी है, वह सब पाने का अधिकारी हो जाता है।

ओशो रजनीश



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