श्री कृष्ण स्मृति भाग 71

 "लेकिन वह खोने के बाद पाने की क्यों सोचे?'


हां, तुम्हारे सोचने की बात नहीं है। ऐसा होता है। तुम सोचोगी तब तो खो ही न सकोगी। अगर प्रभु का राज्य पाने के लिए विनम्र हुए, तब तो विनम्र हुए ही नहीं। वह जो है, आश्वासन नहीं है, "कांसीक्वेंस' है। वह जो दूसरी बात है, वह परिणाम है। वह आपके लिए आश्वासन नहीं है। क्योंकि अगर कोई आदमी कहता है कि मैं सब पाने के लिए सब छोड़ने को राजी हूं, तो छोड़ेगा कैसे? वह तो सब पाने के लिए? कुछ नहीं छोड़ सकता। नहीं, वह जो दूसरा हिस्सा है, वह आश्वासन नहीं है, परिणाम है। ऐसा देखा गया है कि जिन्होंने सब छोड़ा, उन्होंने सब पाया है। लेकिन जिन्होंने सब पाना चाहा है, वे कुछ भी नहीं छोड़ सके हैं।

ओशो रजनीश



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