श्री कृष्ण स्मृति भाग 107
"वह "कलेक्टिव आटो-सजेशन' हो सकता है।'
इसके कई कारण हैं कि नहीं हो सकता। क्योंकि यह जो पांच सौ की सीमित संख्या है, इसमें हर व्यक्ति प्रवेश नहीं पाता। और सिर्फ वे ही लोग प्रवेश पाते हैं जो अपने अचेतन चित्त को जानने में समर्थ हो गए हैं। वह उसकी पात्रता का नियम है। जब तक अचेतन चित्त पर हमारी अपनी सामर्थ्य नहीं है, तब तक "कलेक्टिवली' हम "हिप्नोटाइज्ड' हो सकते हैं। लेकिन जिस दिन मेरे अपने अचेतन चित्त का मुझे पता हो गया, उस दिन मुझे "हिप्नोटाइज्ड' नहीं किया जा सकता। उस दिन कोई उपाय नहीं, क्योंकि मेरे भीतर वह कोई हिस्सा नहीं रहा जहां सुझाव डालकर और मेरे सामने कोई "प्रोजेक्शन' करवाया जा सके। इसलिए एक लामा के हटने पर ही दूसरा लामा चुना जाता है। और वह चुनाव भी बड़ी मुश्किल का चुनाव है।
लामा का चुनाव बड़ी मुश्किल का चुनाव है और उसके बड़े अजीब नियम हैं। एक लामा मरता भी है...अभी यह दलाई लामा जो आज हैं, यह पिछले दलाई लामा की ही आत्मा हैं...पिछला दलाई लामा जब मरता है, एक दलाई लामा जब मरता है तो वह अपना वक्तव्य छोड़ जाता है कि अगली बार इस-इस शरीर के ढंग में मैं प्रकट होऊंगा, तुम खोज लेना। और एक अजीब बात है कि एक छोटा-सा सूत्र छोड़ जाता है। उस सूत्र की पूरे तिब्बत के गांव-गांव में बैंड पीटकर घोषणा की जाती है। उस सूत्र का जो बच्चा जवाब दे देता है--बहुत मुश्किल है वह। दलाई लामा एक मरेगा, तो कितने वर्ष बाद तिब्बत के गांव-गांव में वह सूत्र घुमाया जाए, इसकी वह सूचना कर जाएगा। क्या-क्या चिह्न उस लड़के पर होंगे, इसकी सूचना कर जाएगा। और इसका उत्तर सिवाय इस दलाई लामा के किसी को भी पता नहीं है। वह उत्तर लिखकर रख जाएगा, वह सब "सील्ड' होगा। और जब कोई बच्चा उसका उत्तर दे देगा और सारे चिह्न मिल जाएंगे, तब वह "सील्ड' उत्तर खोला जाएगा। अगर वह उत्तर वही है जो इस बच्चे ने दिया है, तो गवाही होगी कि यह दलाई लामा के योग्य हो गया, इसको दलाई लामा की जगह पर बिठा दिया जाए। यह उसकी ही आत्मा, जो उत्तर लिखकर गई थी, उत्तर दे रही है। तो तिब्बती लामाओं की परंपरा के अपने बड़े अजीब सूत्र हैं। यह जो एक आदमी खाली हो जाएगा, इस खाली आदमी को खोजने के नियम हैं। और इस पर सब तरह के प्रयोग करके यह जांचने की कोशिश की जाएगी कि यह आदमी "हिप्नोटाइज्ड' तो नहीं हो सकता। अगर यह हो जाता है, तो यह पात्र नहीं होगा। इसलिए "कलेक्टिव हिप्नोसिस' का कोई उपाय नहीं है।
फिर कुछ भी किया नहीं जाता। सिर्फ ये पांच सौ लामा एक खास घड़ी में, एक खास क्षण में मौन चुपचाप खड़े हो जाते हैं और घटना घटती है। न कोई सुझाव दिया जाता, न कोई बात की जाती, न कोई चीत की जाती है। यह बहुत भिन्न मामला है। यह अरविंद के कृष्ण-दर्शन का मामला नहीं है।
दूसरी बात, जैसा मैंने कहा कि उन आत्माओं से जिनके शरीर तो छूट गए लेकिन जो अभी सागर-रूप नहीं हो गई हैं, संबंध स्थापित किए जा सकते हैं। जो आत्माएं शरीर तो छोड़ चुकी हैं, लेकिन अभी सागर-रूप में खो नहीं गई हैं, अशरीरी जिनका व्यक्तित्व है, उनसे संबंध स्थापित किए जा सकते हैं। उसमें कोई कठिनाई नहीं है। उसमें जरा भी कठिनाई नहीं है।
कृष्ण अशरीरी आत्मा नहीं हैं, सागर-रूप हो गए हैं। गांधी अशरीरी आत्मा हैं। साधारण रूप से जो लोग भी मर जाते हैं, इन सबसे संबंध स्थापित किए जा सकते हैं। उसके अपने नियम, अपनी विधि, अपने "टेक्नीक' हैं। इसमें बहुत कठिनाई नहीं है। यह बड़ी सरल-सी बात है। कई बार ऐसी आत्माएं अपने स्वजनों से खुद भी संबंध स्थापित करने की चेष्टा करती हैं। हम घबड़ा जाते हैं उससे, हम परेशान हो जाते हैं उससे। जिनको हमने बहुत प्रेम किया है, उनको भी हम अशरीर देखकर प्रेम करने को राजी न होंगे। जिन्हें हमने बहुत चाहा है, वे भी कल अगर शरीर के बिना हमारे द्वार पर उपस्थित हो जाएं तो हम दरवाजा बंद करके पुलिस को चिल्लाएंगे कि हमें बचाओ! क्योंकि हमने शरीर को ही पहचाना है। उससे गहरी तो हमारी कोई पहचान नहीं है।
जो आत्माएं शरीर के बाहर हैं, लेकिन नए जन्मों की तलाश में हैं, उनसे संबंध स्थापित करना बहुत सरल-सी बात है। न उसमें "प्रोजेक्शन' का सवाल है, न उसमें उनके प्रकट होने का सवाल है, सिर्फ उनके पास शरीररूपी यंत्र नहीं रहा, बाकी उनके पास सारे यंत्र हैं। इसलिए आपको उनसे संबंध स्थापित करने का थोड़ा-सा खयाल हो तो बड़ी आसानी से कर सकते हैं। यहां हम इतने लोग बैठे हैं, यहां ऐसा नहीं है कि हम इतने ही लोग बैठे हैं। जितने दिखाई पड़ते हैं, उतने तो बैठे ही हैं, जो नहीं दिखाई पड़ते हैं वे भी मौजूद हैं, और उनसे अभी तत्काल, अभी संबंध स्थापित किया जा सकता है। सिर्फ आपको "रिसेप्टिव' होने की जरूरत है। कमरा बंद कर लें और तीन आदमी कमरे में सिर्फ आंख बंद करके, तीनों हाथ जोड़कर बैठ जाएं, और इतनी ही प्रार्थना कर लें कि इस कमरे में कोई आत्मा हो तो वह अपनी सूचनाएं दे। आप जो सूचनाएं उसको कह दें, वह देना शुरू कर देगी। आप इतना ही कह दें कि यह टेबल पर जो पेपरवेट रखा है, यह उछलकर जवाब देने लगे, तो आप दो-चार दिन में पाएंगे कि आपका पेपरवेट उछलकर जवाब देने लगा। आप यह कह सकते हैं कि दरवाजे पर खटखट करके आवाज दे वह आत्मा, तो दरवाजे पर आवाज हो जाएगी। फिर इसको आप आगे बढ़ा सकते हैं। यह बहुत कठिन नहीं है। क्योंकि आत्माएं चौबीस घंटे चारों तरफ मौजूद हैं। और ऐसी आत्माएं भी चारों तरफ मौजूद हैं जो हमेशा "विलिंग' हैं, जो अगर आप कुछ कहें तो करने को सदा तत्पर हैं। जो बड़ी उत्सुक हैं कि आप किसी तरह का संबंध उनसे स्थापित करें। जो "कम्यूनिकेशन' के लिए बड़ी आतुर हैं। जो कुछ कहना चाहती हैं, लेकिन उनको कहने का उपाय नहीं मिल रहा है। क्योंकि उनके और आपके बीच शरीर का ही "कम्यूनिकेशन' का माध्यम था, वह टूट गया है और दूसरे माध्यम का हमें कोई पता नहीं है। इसमें अड़चन नहीं है। यह बहुत सीधी-सी, सरल-सी, प्रेतात्म-विद्या का हिस्सा है।
यह जो पूछा गया है कि क्या, जैसा कहा जाता है, एक शरीर से आत्मा दूर जाकर वापस लौट आ सकती है? बिलकुल ही लौट आ सकती है। जा भी सकती है। क्योंकि शरीर से हमारा होना, शरीर में हमारा होना है। उससे बाहर की यात्रा सदा संभव है। उसके अपने मार्ग, अपनी विधियां हैं। शरीर के बाहर हुआ जा सकता है, यात्रा की जा सकती है, दूर तक जाया जा सकता है, वापस लौटा जा सकता है। कई बार आकस्मिक रूप से भी वैसा हो जाता है। जो आपको कुछ पता नहीं होता। ध्यान के किसी गहरे क्षण में आप अचानक कई बार ऐसा अनुभव कर पाएंगे कि आपको लगेगा आप शरीर के बाहर हो गए हैं और अपने ही शरीर को देख रहे हैं। फिर उस सबके विस्तार हैं, पर वह अलग बात है। उस पर कभी अलग ही हम इकट्ठे मिलें, तो प्रेतात्म-विद्या पर सारी बात की जा सकती है।
ओशो रजनीश
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