श्री कृष्ण स्मृति भाग 109

 "यह मन ही हो, आत्मा न हो, इसकी भी तो संभावना है!'


उसकी बात करते हैं। वह मन भी हो, तो भी शरीर से भिन्न कुछ होना शुरू हो जाता है। और शरीर से भिन्न होना एक बार विज्ञान के खयाल में आना शुरू हुआ, तो बहुत दूर नहीं है आत्मा का होना। क्योंकि झगड़ा जो है वह यही है कि शरीर से भिन्न भीतर कुछ है? एक बार इतना भी तय हो जाए कि शरीर के भीतर शरीर से भिन्न मन भी है, तो भी यात्रा शुरू हो गई। और विज्ञान की यात्रा ऐसे ही शुरू होगी। पहले मन ही होगा, फिर धीरे-धीरे ही हम आत्मा तक विज्ञान को ले जा सकें, इशारे करवा सकें। लेकिन मन है।

अभी एक आदमी है, टेड नाम का एक व्यक्ति है। जिसके बड़े अनूठे अनुभव "साइकिक सोसाइटीज' में हुए हैं। अनूठे अनुभव उसके ये हैं कि वह आदमी अगर न्यूयार्क में बैठा है, उसने मुझे कभी नहीं देखा, मेरा कोई चित्र नहीं देखा, मेरे संबंध में कभी सुना नहीं, लेकिन आप अगर उससे कहें कि वह मेरे संबंध में सोचे, विचार करे, तो वह आंख बंद कर लेगा और वह मेरे संबंध में ध्यान करेगा और जब आधे घंटे बाद वह आंख खोलेगा, तो उसकी आंख में से मेरा चित्र उतारा जा सकता है। उसकी आंख से, कैमरा उसकी आंख से मेरा चित्र उतार लेगा। और इस तरह के हजारों चित्र उतारे गए हैं और फिर मेरे असली चित्र से जब मिलाया जाता है तब बड़ी हैरानी होती है। करीब-करीब, बस "फेंटनेसस' का फर्क होता है, इससे ज्यादा फर्क नहीं होगा। इतना साफ नहीं होता, लेकिन होता यही है।

इसका मतलब क्या है?

इसका मतलब यह है कि उसकी आंख किसी-न-किसी तरह मुझे देखने में समर्थ हो गई है। न केवल देखने में समर्थ हो गई है, बल्कि जैसा मेरे सामने आप मुझे देखें तो आपकी आंख में मेरा चित्र बनता है, ऐसे ही हजारों मील फासले पर अज्ञात अपरिचित आदमी का चित्र भी उसकी आंख में बन गया है। इसके हजारों प्रयोग हुए हैं और हजारों चित्र हजारों तरह के उस आदमी की आंख में पकड़े गए हैं।

"टेलीपैथी' के तो बहुत प्रयोग हो गए हैं। और अभी चूंकि "स्पेस ट्रेवेल' शुरू हुई, और चांद पर जाना है--चांद पर तो हम चले गए--कल मंगल पर जाना है, और फिर लंबी यात्राएं शुरू होंगी, जिनमें यात्री वर्षों के लिए जाएंगे और वर्षों बाद लौटेंगे। मंगल पर भी एक वर्ष लगेगा आने-जाने में। इस एक वर्ष की लंबी यात्रा में अगर यंत्रों ने जरा-सी भी चूक कर दी, तो फिर हमें उन यात्रियों से कभी कोई संबंध नहीं हो सकेगा कि वे कहां गए और क्या हुआ! बचे कि नहीं बचे! अनंत काल तक फिर हमें उनका कोई पता नहीं चलेगा। वे हमसे किसी तरह का "कम्यूनिकेशन' नहीं कर पाएंगे। इसीलिए रूस और अमरीका दोनों, जहां अंतरिक्ष की यात्रा पर गहन शोध चलती है, "टेलीपैथी' में उत्सुक हो गए हैं। क्योंकि अगर किसी दिन स्पेस यात्री का यंत्र खराब हो जाएगा और वह रेडियो यंत्रों के द्वारा हमें खबर न दे पाए, तो "टेलीपैथी' से खबर दे सके। एक "आल्टरनेटिव' चाहिए। नहीं तो, यंत्र का कोई भरोसा ही नहीं है।...इधर हम "आल्टरनेटिव' रखे हैं न, यह बैटरी सेट रखे हुए हैं। यंत्र का कोई भरोसा नहीं है। वह कभी भी...।

लेकिन अभी साधारण यंत्र का भरोसा न भी हो तो कोई खतरा नहीं है, लेकिन यात्री जो अंतरिक्ष में गया है, अगर उसके यंत्र हमें खबर न दे पाएं, या हम उसे खबर न दे पाएं, हमारा संबंध एक बार टूट जाए, तो फिर हमें कुछ पता नहीं चलेगा कि वह कहां गया है? है भी अब जगत में या नहीं है? वह अश्वत्थामा की कथा हो जाएगी, उसका फिर कभी पता नहीं चलेगा। वह फिर कभी मरेगा भी नहीं। उसके बाबत हम फिर कुछ भी नहीं जान सकेंगे, कभी। तो वह कोई खबर दे सके यंत्र के अतिरिक्त। इसलिए रूस और अमरीका दोनों ही "टेलीपैथी' में भारी उत्सुक हैं। और दोनों ने गहरे प्रयोग किए हैं।

रूस में एक आदमी है फयादेव। उस आदमी ने हजारों मील दूर तक संदेश पहुंचाने का प्रयोग सफलता से किया। बैठकर वह संदेश भेजेगा किसी व्यक्ति विशेष को और उस व्यक्ति विशेष को उसके भीतर से संदेश आता हुआ मालूम पड़ेगा।

तो विज्ञान धीरे-धीरे आदमी शरीर ही नहीं है, उसके भीतर कुछ अशरीरी भी है, इस दिशा में कदम उठा रहा है। और एक बार यह तय हो जाए कि आदमी के भीतर कुछ अशरीरी भी है, तो पुनर्जन्म का द्वार खुल जाएगा। दर्शन से जो नहीं संभव हो सका, रहस्यवादी जो संभव नहीं कर सके सबको समझाना, वह विज्ञान संभव कर पाएगा। वह संभव हो सकता है। वह होता जा रहा है।

ओशो रजनीश



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