श्री कृष्ण स्मृति भाग 127

 "पहले एक चर्चा में आपने कहा था कि पुरुष में साठ प्रतिशत पुरुष और चालीस प्रतिशत स्त्री, तथा स्त्री में साठ प्रतिशत स्त्री और चालीस प्रतिशत पुरुष होता है। यदि दोनों शक्तियों का पचास-पचास प्रतिशत अनुपात हो जाए, तो क्या वह शक्ति नपुंसक होगी? और परमात्मा को अर्द्धनारीश्वर क्यों कहा है?'


मैंने ऐसा नहीं कहा था कि साठ और चालीस का अनुपात होता है, उदाहरण के लिए कहा। अनुपात बहुत हो सकते हैं। सत्तरत्तीस भी हो सकता है, अस्सी-बीस भी हो सकता है, नब्बे-दस भी हो सकता है, इक्यावन-उनचास भी हो सकता है। और पचास-पचास भी हो सकता है। और जब पचास-पचास होता है, तभी "एसेक्सुअलिटी' पैदा हो जाती है। तभी वह व्यक्ति यौन की दृष्टि से द्वंद्व के बाहर हो जाता है, जिसको हम नपुंसक या "इम्पोटेंट' कह रहे हैं।

यह बड़े मजे की बात है कि इस मुल्क ने ब्रह्म शब्द को नपुंसकलिंग में रखा है। ब्रह्म पुरुष है कि स्त्री? नहीं, ब्रह्म "इम्पोटेंट' है। वह जो कि "ऑमनीपोटेंट' है, वह जो कि सर्वशक्तिमान है, उसको हमने जो लिंग रखा है वह नपुंसकलिंग में रखा है। क्योंकि वह कैसे स्त्री हो सकता है, वह पक्ष हो जाएगा। वह कैसे पुरुष हो सकता है, वह पक्ष हो जाएगा। वह निष्पक्ष है। निष्पक्ष है, तो वह पचास-पचास दोनों पूरा है, तभी निष्पक्ष हो  सकता है। अर्द्धनारीश्वर की कल्पना ब्रह्म की कल्पना है। उसमें नारीत्व और पुरुषत्व आधा-आधा है। वह दोनों है एकसाथ। क्योंकि वह दोनों नहीं है। अगर पुरुष है तो स्त्रीत्तत्व का इस जगत में कहां से आविर्भाव होगा? अगर वह स्त्री है, तो पुरुषत्तत्व कहां से आएगा, कहां से शुरू होगा, कहां से पैदा होगा? वह दोनों ही है। एकसाथ दोनों है। इसलिए दोनों को पैदा कर पाता है।

और हम जब तक स्त्री-पुरुष हैं, तब तक हम परमात्मा के टूटे हुए दो हिस्से हैं। इसलिए स्त्री-पुरुष का आपसी आकर्षण एक होने का आकर्षण है। स्त्री-पुरुष का आकर्षण पूरा होने का आकर्षण है। वह आधे-आधे हैं। अर्द्धनारीश्वर की हमारी कल्पना और हमारी प्रतिमा बड़ी अनूठी है। दुनिया ने बहुत प्रतिमायें बनाई हैं, लेकिन अर्द्धनारीश्वर में जो बहुत मनोवैज्ञानिक सत्य है, उसका कोई मुकाबला नहीं है। अर्द्धनारीश्वर में हम इतना ही कह रहे हैं कि परमात्मा दोनों हैं, एक-साथ, और पूरा है। एक पहलू उसका स्त्रैण है, एक पहलू उसका पुरुष है। या ऐसा कहें कि वह दोनों का सम्मिलन है, दोनों का मध्य है; दोनों का "बियांड' है, दोनों का पार है।

यह जो मैंने कहा कि परमात्मा को, ब्रह्म को, यह जो मध्य की स्थिति है, जीसस ने एक बहुत अच्छा शब्द उपयोग किया है, "यूनचेज़ ऑफ गॉड'। जीसस ने कहा है कि जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु के लिए नपुंसक हो जाना पड़ेगा। बड़ी अजीब बात कही है। पर कही बिलकुल ठीक है। जिसे प्रभु को पाना है, उसे प्रभु जैसा होना ही पड़ेगा। इसलिए बुद्ध अपनी पूरी गरिमा में, या कृष्ण अपनी पूरी गरिमा में न स्त्री हैं, न पुरुष हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे दोनों हैं। अपनी पूरी गरिमा में वे मिश्रित हैं। अपनी पूरी गरिमा में एक अर्थ में वे "ट्रांसेंडेंटल सेक्स' हैं, वे पार हो गए दोनों द्वंद्वों के और दोनों के बाहर हो गए। लेकिन हमारे बीच द्वंद्व है। मात्राओं का द्वंद्व है।

और जो उन्होंने पूछा कि जो हमारे बीच "थर्ड सेक्स' पैदा होता है कभी, उसका क्या कारण है? उसका वही कारण है। अगर उसके भीतर "फिजियोलाज़िकली', शारीरिक तल पर दोनों तत्व समान रह गए, तो उसका लिंग विकसित नहीं हो पाता किसी भी दिशा में। उसकी जाति ठीक से विकसित नहीं हो पाती। दोनों बराबर समतुल शक्तियां एक-दूसरे को काट जाती हैं। यह भी संभव हो गया है, पहले तो कभी-कभी आकस्मिक होता था कि कोई स्त्री बाद के जीवन में पुरुष हो गई, या कोई पुरुष बाद में स्त्री हो गया।

लंदन में पीछे एक बड़ा मुकदमा चला। और सनसनीखेज मुकदमा था। और मुकदमा यह था कि एक लड़की और एक लड़के का विवाह हुआ, लेकिन विवाह के बाद वह लड़की जो थी वह लड़का हो गई। और अदालत में जो मुकदमा था वह यह था कि उस लड़की ने धोखा दिया, वह लड़का थी ही। बड़ी कठिनाई हुई इस मुकदमे में। उस लड़की का तो कहना था, वह लड़की थी, और वह विकास उसमें बाद में हुआ है। लेकिन तब तक विज्ञान इस संबंध में बहुत साफ नहीं था। लेकिन अभी इधर बीस-पच्चीस वर्षों में विज्ञान बहुत साफ हुआ। और घटनाएं बहुत तरह की घटी हैं, जिनमें "सेक्स'-रूपांतरण हुआ, जिनमें कोई पुरुष स्त्री हो गया, कोई स्त्री पुरुष हो गई। अगर यह "मार्जिनल केसेज' हैं, अगर उन्चास और इक्यावन का "मार्जिन' है, तो बदलाहट कभी भी हो सकती है। थोड़े-से "केमिकल' फर्कों से बदलाहट हो सकती है। और अब, अब तो बहुत सुविधापूर्ण हो गई है बात और भविष्य में बहुत ज्यादा दिन नहीं हैं कि कोई आदमी जिंदगी भर पुरुष रहने का ही कष्ट भोगे, या कोई स्त्री जिंदगी भर स्त्री रहने के ही चक्कर में रहे। इसमें बदलाहट कभी भी की जा सकती है। यह "सेक्स' जो है, यह रूपांतरित हो सकेगा, क्योंकि उसके "केमिकल' सूत्र सारे खयाल में आ गए हैं कि अगर एक "केमिकल' की मात्रा बढ़ा दी जाए व्यक्तित्व के शरीर में, "हारमोन्स' बदल दिए जाएं, तो उस व्यक्तित्व में स्त्री प्रगट हो सकती है--फिर पुरुष स्त्री हो सकता है, स्त्री पुरुष हो सकती है।

स्त्री और पुरुष एक ही तरह के व्यक्ति हैं, सिर्फ मात्राओं के फर्क हैं उनमें कुछ। उन मात्राओं के कारण सारी-की-सारी बात है।

अर्द्धनारीश्वर इस बात की सूचना है कि विश्व का मूलस्रोत न तो स्त्री है न तो पुरुष है। वह दोनों एकसाथ हैं। लेकिन क्या मैं आपसे यह कहूं कि वह जो "इम्पोटेंट' हैं, नपुंसक है, वह परमात्मा के ज्यादा निकट पहुंच जाएगा? यह मैं नहीं कह रहा हूं। परमात्मा दोनों हैं और नपुंसक दोनों नहीं हैं।

इस फर्क को आप खयाल में ले लेना।

परमात्मा दोनों हैं एकसाथ, और जिसे हम नपुंसक कहें, वह दोनों नहीं है। नपुंसक हमारा सिर्फ अभाव है, "एब्सेंस' है। और परमात्मा भाव है, "प्रेजेंस' है। परमात्मा में स्त्री और पुरुष दोनों हैं। इसलिए अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा है, उसमें आधी स्त्री है, आधा पुरुष है। हम परमात्मा को नपुंसक जैसा भी बना सकते थे, जिसमें न स्त्री होती, न पुरुष होता; लेकिन वह अभाव होता। परमात्मा दोनों का भाव है, दोनों की "पाज़िटिविटी' है। और जिसे हम नपुंसक कहते हैं, वह बेचारा दोनों का अभाव है। उसके पास कोई व्यक्तित्व नहीं है, इसलिए उसकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है। इसलिए जब जीसस कहते हैं, "यूनचेज़ ऑफ गॉड, तब वह बिलकुल कह रहे हैं कि परमात्मा में, परमात्मा के लिए वे न स्त्री रह जाएं, न पुरुष हो जाएं; और तब वे दोनों रह जाएंगे, दोनों हो जाएंगे।

ओशो रजनीश



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