श्री कृष्ण स्मृति भाग 100

 "भगवान श्री, आपने कहा कि शंकर की व्याख्या अधूरी है। गीता पर लगभग चालीस-पचास व्याख्याएं हैं। क्या कोई व्याख्या पूरी भी है? लोकमान्य तिलक की व्याख्या को क्या आप पूरी कहेंगे? वह "एस्केपिस्ट' तो नहीं हैं, "एक्टिविस्ट' हैं और "मॉरलिस्ट' भी हैं। आप उनके "एक्टिविजम' को और शंकर के "सुपरामॉरलिज्म' को, दोनों को एकसाथ मिलाने का प्रयत्न कर रहे हैं क्या?'


कृष्ण पर कोई टीका पूरी नहीं है। हो नहीं सकती। जब तक कि कृष्ण जैसा व्यक्ति ही टीका न करे।

कृष्ण पर कोई टीका पूरी नहीं है। सब पहलू हैं। और कृष्ण अनंत पहलू हैं। उनमें से जिसको जो प्रीतिकर है, चुन लेता है। शंकर उसी गीता में संन्यास सिद्ध कर देते हैं, अकर्म सिद्ध कर देते हैं। उसी गीता में तिलक कर्म सिद्ध कर देते हैं, कर्मयोग सिद्ध कर देते हैं। शंकर से ठीक उलटा पहलू तिलक चुन लेते हैं। शंकर के पहलू को चुने हुए हजार साल हो गए थे। और हजार साल में शंकर के पलायनवादी पहलू ने हिंदुस्तान की जड़ों को बहुत तरह से कमजोर किया। भगोड़ापन कमजोर करेगा। हिंदुस्तान में जो भी सक्रिय होने की क्षमता थी, उस सबको क्षीण किया। हजार साल के अनुभव ने "पेंडुलम' को घुमा दिया। जरूरी हो गई कि गीता की कोई व्याख्या हो जो कर्म को प्रश्रय दे और कहे जोर से कि गीता कर्म के लिए ही कहती है। ठीक दूसरे "एक्स्ट्रीम' पर तिलक ने वक्तव्य दिया। एक पहलू चुना था शंकर ने, अकर्म का--कर्म छोड़ने वाले अकर्म का, तिलक ने दूसरा पहलू चुना कर्म में डूबने वाले का। तो कर्म की व्याख्या तिलक ने की, वह भी उतनी ही अधूरी है।

बहुत-सी व्याख्याएं हैं कृष्ण पर, अंदाजन पचास नहीं हजार, और रोज बढ़ती जाती हैं। लेकिन कोई टीका गीता के साथ न्याय नहीं कर पाती। उसका कारण है कि कोई टीकाकार "ट्रांसरेशनल' होने की हिम्मत नहीं कर पाता। असल में टीकाकार सदा "रेशनल' ही होता है। तर्क से पार अगर वे जाएं, तो गीता निर्मित हो जाएगी, टीका निर्मित नहीं होगी। तब गीता बन जाएगी। तब टीका की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी। टीका का मतलब ही यह होता है कि जो हमें समझ में नहीं पड़ता, उसे हम समझाने योग्य टिप्पणी दे रहे हैं। टीका का मतलब ही यह होता है, "कमेंट्री'  का मतलब ही यह होता है कि जो गीता में आपको समझ में नहीं आता, वह मैं समझाता हूं। तो मैं उसकी एक व्याख्या करूंगा। और जब समझाने के लिए ही व्याख्या करूंगा, तो वह तर्क के पार नहीं जा सकती। तर्क के पार अगर कोई भी बात जाएगी तो वह स्वयं गीता बन जाएगी, "कमेंट्री' नहीं रह जाएगी।

ओशो रजनीश



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