श्री कृष्ण स्मृति भाग 94

 "भगवान श्री, चैतन्य महाप्रभु और उनके अचिंत्य भेदाभेद की बात हुई, गिन्सबर्ग की भी बात हुई। इसके पहले शब्द के मंत्र बन जाने की विशिष्टता भी आपने बताई। और यही बात नाम-कीर्तन पर भी लागू होती है। साथ ही सुबह के प्रवचन में आपने कहा था कि शब्द का उपयोग किया नहीं कि द्वैत खड़ा हो जाता है। लेकिन कृष्ण ने बड़े विश्वास के साथ कहा है कि जो पुरुष ओम् अक्षर जप ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ उसके अर्थस्वरूप मेरा चिंतन करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह पुरुष परमगति को प्राप्त हो जाता है। भगवान श्री, कृष्ण के शब्द ओम् से अद्वैत का बोध कैसे होता है? ओम् "रेशेनल' है या "इर्रेशनल' है? आपके ध्यान-प्रयोग में ओम् को प्रवेश देने में क्या-क्या बाधाएं थीं?'


शब्द सत्य नहीं हैं। सत्य तो निःशब्द में ही उपलब्ध होता है। और सत्य को प्रगट करना हो तो भी शब्द से प्रगट किया नहीं जा सकता है। सत्य तो निःशब्द में ही अभिव्यक्त होता है, मौन में ही प्रगट होता है। मौन ही सत्य की मुखरता है। मौन ही सत्य के लिए वाणी है, ऐसा मैंने सुबह कहा।

पूछा जाता है, अगर ऐसा है तो अभी आप कहते हैं कि शब्द बीज बन सकता है, और शब्द साधना के लिए आधार बन सकता है। दोनों में कोई विरोध नहीं है, दोनों बात ही अलग है। मैंने कहा सुबह कि शब्द सत्य नहीं हैं। लेकिन जो असत्य में घिरे हैं, सत्य तक पहुंचने के लिए असत्य के सहारे ही चलते हैं। या तो छलांग लगाएं तब सीधे शब्द से मौन में कूद जाएं। अगर छलांग लगाने की हिम्मत न हो तो शब्द को धीरे-धीरे छोड़ते चलें। बीज-शब्द का मतलब है, सब शब्द छोड़ो, एक ही शब्द पकड़ो। इसमें सब शब्द छोड़ो और एक शब्द पकड़ो। नहीं हिम्मत है सब एक-साथ छोड़ने की तो सब छोड़ो, एक पकड़ो। फिर अंततः उस एक को भी छोड़ना पड़ता है। वह जो बीज-शब्द है, वह सत्य तक नहीं ले जाता, सिर्फ मंदिर के द्वार तक ले जाता है। जैसे मंदिर के बाहर जूते छोड़ देने पड़ते हैं, ऐसे उस बीज-शब्द को भी बाहर ही छोड़ देना पड़ता है। मंदिर में प्रवेश करते वक्त वह साथ नहीं जाता। उतनी दुविधा भी साथ नहीं ले जाई जा सकती। उतना शोरगुल भी बाधा है। सब शब्द तो बाधा हैं, बीज-शब्द भी अंततः बाधा है।

इसीलिए वे जो बीज-शब्द की बात किए हैं, वे भी कहे हैं कि वह क्षण आएगा जब बीज-शब्द भी खो जाएगा, तब तुम समझना ठीक हुआ। नाम जपना, लेकिन फिर अजपा नाम पर पहुंच जाना। जप से शुरू करना और अजपा पर पहुंच जाना। एक घड़ी आएगी, जप छूटे और अजप में कूद जाना। यह सारा मामला वही है--या पहले छोड़ो, या आखिरी छोड़ो। कहीं छोड़ देना पड़ेगा। जो पहले छोड़ने की हिम्मत रखते हैं, वे पहले छोड़ दें। जो नहीं छोड़ने की हिम्मत रखते हैं, बाकी शब्द छोड़ें, एक पकड़ लें। और उसको अंत में छोड़ दें।

मैं छलांग का आग्रह करता हूं, इसलिए साधना में जहां तक बने बीज-शब्द से बचने की बात करता हूं। उसे पीछे छुड़वाना पड़ेगा। रामकृष्ण के साथ ऐसा हुआ, उससे समझ में आ जाएगा।

रामकृष्ण ने मां का स्मरण करके ही, परमात्मा को मां स्वरूप मानकर ही साधना की। फिर ऐसा हो गया कि वह उस जगह पहुंच गए जहां मंजिल की आखिरी सीढ़ी आ गई। मां के साथ पहुंच गए। लेकिन उस सीढ़ी के बाद तो अकेले ही प्रवेश हो सकता है। मां को भी साथ नहीं लिया जा सकता। वह तो प्रतीक था, वह तो शब्द था, वह तो रूप था, वह तो लहर थी, अब सागर में प्रवेश करने के पहले उसे छोड़ देना जरूरी था। रामकृष्ण बड़ी मुश्किल में पड़ गए। रामकृष्ण की जिंदगी में सबसे बड़ी मुश्किल उस दिन आती है जिस दिन मां को छोड़ने का सवाल उठता है। अब जिसको इतने प्रेम से संवारा हो, और जिसको इतने आंसुओं से सींचा हो, और इतना नाच-नाचकर जिसको रमाया हो, और पुकार-पुकार कर जिसको बसाया हो, और श्वास-श्वास और हृदय की धड़कन-धड़कन में जिसको लेकर जिआ गया हो, अब आखिरी क्षण सवाल उठता है कि इसे छोड़ दो।

तोतापुरी के नाम के एक अद्वैतवादी साधक के पास वह सीखते हैं इसका छोड़ना। तोतापुरी उनसे कहता है कि इस मां को छोड़ो। तोतापुरी के लिए प्रतीक का कोई मतलब नहीं है। वह कहता है, छोड़ो इस मां को। इससे नहीं चलेगा। अकेले ही जा सकते हो। रामकृष्ण आंख बंद करते हैं, फिर आंख खोल लेते हैं कि नहीं, यह नहीं हो सकता। मैं कैसे छोड़ सकता हूं। मैं अपने को छोड़ सकता हूं, मां को नहीं छोड़ सकता। तोतापुरी कहते हैं, फिर कोशिश करो, क्योंकि अगर तुम अपने को छोड़ दोगे तो मंदिर के बाहर रह जाओगे, मां मंदिर के भीतर चली जाएगी, उससे तुम्हें क्या होगा? उससे कोई मतलब नहीं है। तुम्हें जाना है सत्य के सागर में, तो छोड़ो, यह द्वैत नहीं चलेगा, यह दो नहीं चलेंगे, यह प्रेम की गली बहुत संकरी है, यह सत्य की गली बहुत संकरी है, यहां आखिर में एक ही बच जाता है। छोड़ो। नहीं रामकृष्ण छोड़ पाते हैं, तीन दिन तक तोतापुरी मेहनत करते हैं। फिर तोतापुरी कहते हैं, तो मैं जाऊं। तो रामकृष्ण कहते हैं, एक बार और मेरे साथ मेहनत कर लो, क्योंकि तड़फता तो हूं उसके लिए जो अनजाना रह गया है, लेकिन प्रतीक जिन्हें बहुत प्रेम किया, बड़े जोर से भीतर बंध गए हैं।

तो तोतापुरी एक कांच का टुकड़ा लेकर आता है। रामकृष्ण आंख बंद करके बैठते हैं, तोतापुरी कहता है कि मैं तुम्हारे माथे पर आज्ञाचक्र जहां है, वहां कांच से काट दूंगा तुम्हारी चमड़ी को, जब खून बहने लगे और कटाई तुम्हें कांच की मालूम पड़ने लगे, तब तुम भीतर एक तलवार उठाकर मां को दो टुकड़े कर देना। रामकृष्ण कहते हैं, मां को, और दो टुकड़े, और तलवार! क्या कहते हैं आप! अपने को कर सकता हूं, मां पर कैसे तलवार उठाऊंगा? और फिर वहां तलवार लाऊंगा कहां से? तो वह तोतापुरी कहता है, पागल हो तुम, जो मां नहीं थी उसको तुम ले आए, तो जो तलवार नहीं है उसको भी ले आओ। जब इतना बड़ा झूठ तुमने सत्य कर लिया, जो नहीं है कहीं भी उसको भी तुमने साकार कर लिया, तो अब एक तलवार और साकार कर लो, इसमें क्या देर लगेगी! तुम कुशल हो, तलवार भी आ जाएगी। झूठी तलवार काम करेगी।

रामकृष्ण आंख बंद करके बैठते हैं, चूंकि तोतापुरी ने कहा है कि आज वह चला जाएगा, वह इस तरह बचकाने खेल में नहीं पड़ सकता। वह पहले ही छलांग लगा लेने वाले लोगों में से है। रामकृष्ण आखिरी सीढ़ी पर दिक्कत में पड़े हैं। वह कहता है, कहां की बचकानी बातें करते हो, छोड़ो। शर्म नहीं आती! फिर वह कांच उठाकर रामकृष्ण के माथे को काट देता है। इधर वह माथे को काटता है, उधर रामकृष्ण हिम्मत जुटाकर तलवार से दो टुकड़े मां के कर देते हैं। मूर्ति गिर जाती है, रामकृष्ण परम समाधि में खो जाते हैं, उठकर, वापस लौटकर वे कहते हैं, आखिरी बाधा गिर गई, "द लास्ट बैरियर'।

तो वे जो शब्द हैं, वे जो मंत्र हैं, वे जो बीज हैं, वे सबके सब "लास्ट बैरियर' बनेंगे। उनसे जो चलेगा, एक दिन तलवार उठाकर उनको तोड़ना भी पड़ेगा। फिर बड़ा कष्ट पड़ता है। इसलिए मैं जहां तक कोशिश करता हूं, उनको जगह न बने, अन्यथा पीछे मुझे और एक झंझट होगी। वह बात पहले ही निबटा लेनी अच्छी।

और दूसरा सवाल पूछा है कि कृष्ण कहते हैं कि ओम् रूप में मुझे देखकर, जानकर, जीकर, पहचानकर अंत क्षण में तू मुझको उपलब्ध हो जाएगा। तो यह ओम् शब्द है या नहीं?

यह ओम् बड़ा अदभुत शब्द है। यह असाधारण शब्द है। असाधारण इसलिए कि अर्थहीन शब्द है। सब शब्दों में अर्थ होते हैं, इस शब्द में कोई अर्थ नहीं है। इसलिए ओम् का हम दुनिया की किसी भाषा में अनुवाद नहीं कर सकते हैं। कोई उपाय नहीं है। अर्थ हो तो अनुवाद हो सकता है, क्योंकि उसके अर्थ का दूसरा शब्द दुनिया की किसी भाषा में मिल जाएगा। लेकिन ओम् का अनुवाद नहीं कर सकते, क्योंकि यह अर्थहीन है, वह "मीनिंगलेस' है। सब शब्दों में "मीनिंग' होते हैं, इसमें कोई "मीनिंग' नहीं है, इसमें कोई अर्थ नहीं है।

यह शब्द जिन्होंने बनाया, यह उन्होंने शब्द और निःशब्द के बीच में एक कड़ी खोजी। शब्द है अर्थपूर्ण, निःशब्द न अर्थ है, न अनर्थ है, पार है। इस दोनों के बीच में एक "ब्रिज' बनाया ओम् का। यह भाषा की, शब्द की ध्वनियों की--तीन मूल ध्वनियां हैं, अ, उ, म--उन तीनों को जोड़कर बना लिया। समस्त शब्द-ध्वनियां अ, उ, म का विस्तार हैं। ए, यू, एक का विस्तार हैं। इन तीनों को जोड़कर इस ओम् को बना लिया। इसलिए फिर इस ओम् को शब्द की तरह लिखा भी नहीं, इसको "पिक्चोरियल' बना लिया। इसका चित्र बना दिया जिसमें कि यह भी खयाल में न रहे कि यह कोई शब्द है। यह एक चित्र है। और वहां खड़ा है जहां शब्द समाप्त होते हैं और निःशब्द शुरू होते हैं। यह सीमांत का पत्थर है। यह उस जगह खड़ा है ओम्, जहां से आगे फिर शब्द नहीं है। जिसके इस तरफ शब्द हैं। यह बीच की कड़ी है। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि अगर तू मुझे ओम् रूप, ओम् रूप का मतलब है--अर्थहीन, शब्दातीत, भाषाकोष में नहीं मिलता है जो, ऐसे शब्द में मुझे सोच सके अंत क्षण में, तो तू मुझे उपलब्ध हो जाएगा। क्योंकि यह सीमांत का शब्द है। अंत समय अगर, इस सीमांत पर कोई पहुंच सके, तो छलांग हो जाएगी।

इस ओम् शब्द में भारत के मन ने बहुत कुछ भरा है। इसे बड़ा विस्तीर्ण अर्थ दिया है। इतना विस्तीर्ण अर्थ दिया है कि अब इसमें कोई अर्थ नहीं है। इतना फैलाया है, इतना फैलाया है कि उसमें कोई सीमा नहीं रही। लेकिन, ओम् के पाठ का सवाल नहीं है, ओम् के अनुभव का सवाल है। और अगर ध्यान में आप उतरेंगे, तो जब सब शब्द खो जाएंगे, तब आपके भीतर ओम् की ध्वनि होने लगेगी। यह आपको करनी नहीं पड़ेगी। अगर करनी पड़ी तो धोखा हो सकता है, कि वह आप ही कर रहे हों।

इसलिए मैंने भी ध्यान में ओम् की जगह नहीं बनाई है। अगर हम अपनी तरफ से ओम् की ध्वनि करें, तो हो सकता है वह शब्द-ध्वनि ही होगी। एक ओम् की ध्वनि वह भी है, जब हमारे सब शब्द खो जाते हैं तो वह शेष रह जाती है। उसको कहना चाहिए वह "कॉज्मिक साइलेंस' की ध्वनि है। जब सब शेष रह जाता है, सब मिट जाता है, सब शब्द, सब बुद्धि, सब विचार, तब एक ध्वनि का स्पंदन रह जाता है, जिसको इस देश में ओम् की तरह व्याख्या किया गया है। उसकी व्याख्या और भी हो सकती है। वह हमारी व्याख्या है। कभी आप रेलगाड़ी में बैठकर अगर चाहें, तो चक्के की आवाज की बहुत तरह की व्याख्या कर सकते हैं। यह चक्का जब आवाज करता है, तो वह कुछ आपके लिए आवाज नहीं करता, न आपके लिए कुछ करता है, लेकिन आप जो चाहें आप उसमें खोज सकते हैं। वह आपकी खोज होगी। जब विराट शून्य उत्पन्न होता है, तो विराट शून्य की अपनी ध्वनि है, अपना संगीत है। "साउंड आफ कॉज्मिक साइलेंस'। जब सब शून्य हो जाता है, तब उसकी अपनी ध्वनि है। उस ध्वनि का नाम अनाहत है। वह किसी कारण से पैदा नहीं होती।

हम ताली बजाते हैं तो यह आहत नाद है। दो चीजों की टक्कर से पैदा होता है। आहत नाद का अर्थ है, दो चीजों की टक्कर से पैदा हो। ढोल पीटते हैं, आहत नाद है। बोलते हैं तो ओंठ और जीभ का आहत नाद है। जब सब बंद हो जाता है, जहां दो ही नहीं रह जाते, एक ही रह जाता है, तब अनाहत नाद होता है। बिना किसी चोट के, बिना किसी चोट के, बिना दो के टकराए ध्वनि होती है; वह जो ध्वनि है अनाहत, उसे इस देश के मनीषियों ने ओम् की तरह व्याख्या की है। दूसरे देश के मनीषियों ने भी उसकी व्याख्या की है, तो वह करीब-करीब ओम् के है। जैसे क्रिश्चियन "अमीन' कहते हैं। वह ओमीन की व्याख्या है, वह ओम् की व्याख्या है। मुसलमान भी "अमीन' कहते हैं। उपनिषद लिखा जाएगा तो सब लिखने के बाद आखिर में ऋषि लिखेगा: ओम् शांतिः शांतिः शांतिः। मुसलमान आयत पड़ेगा, शास्त्र लिखेगा, तो आखिर में सब लिखने के बाद लिखेगा: अमीन, अमीन, अमीन। उससे पूछो अमीन का क्या अर्थ है? अमीन अर्थहीन है। वह उसी "कॉज्म?िक' ध्वनि की व्याख्या है उसकी, ओम् की व्याख्या है। क्रिश्चियन भी अमीन का उपयोग करता है।

अंग्रेजी में कुछ शब्द हैं: "ओमनीसियेंट', "ओमनीप्रेजेंट', ओमनीपोटेंट'। ये बड़े अजीब शब्द हैं। इनका अंग्रेजी भाषाशास्त्र के पास व्युत्पत्ति का सूत्र नहीं है। ये सब ओम् से बने शब्द हैं। "ओमनीसियेंट' का मतलब है, जिसने ओम् को देखा। यह बहुत मुश्किल मामला है। इसलिए अंग्रेजी भाषाशास्त्री बड़ी कठिनाई में पड़ता है कि इसका मतलब क्या है, इस "ओमनीसियेंट' का मतलब क्या है? "वन हू हेज़ सीन द ओम्। जिसने ओम् को देखा, वह "ओमनीसियेंट' है। "ओमनीप्रेजेंट' का क्या मतलब है? जो ओम् में उपस्थित हो गया। "ओमनीपोटेंट' का क्या मतलब है? कि जिसको उतनी ही ऊर्जा मिल गई जितनी ओम् की है, जो उतना ही शक्तिशाली हो गया जितना ओम् है।

यह ओम् की व्याख्या बहुत-बहुत रूपों में पकड़ी गई। लेकिन, दुनिया के दो बड़े धर्मस्रोतों ने...यह बड़े मजे की बात है, जैन हिंदुओं का कुछ स्वीकार न करेंगे, लेकिन ओम् को इनकार न करेंगे। अगर जैन, बौद्ध, हिंदुओं के बीच कोई एक शब्द है जो समान है, तो वह ओम् है। अगर हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई, मुसलमान, सबके बीच कोई एक शब्द समान है, तो वह ओम् है। हां, उनकी व्याख्या "ओमीन' की है, "अमीन' की है, ये उसे ओम् कहते हैं। वह हमारा गाड़ी के चाक में सुना गया फर्क है। पक्का नहीं कहा जा सकता कि वह "अमीन' है या "ओम्' है। इसमें पक्का नहीं हुआ जा सकता, वह "अमीन' भी हो सकता है, वह "ओम्' भी हो सकता है। लेकिन एक बात पक्की है कि अमीन में भी और ओम् में भी एक ही ध्वनि की व्याख्या की गई है। वह ध्वनि अंतिम है। जब हम सब शब्दों के पार पहुंचते हैं तो एक ध्वनि शेष रह जाती है, जो कॉज्म?िक साउंड' है।

झेन फकीर कहते हैं अपने साधक को कि तुम उस जगह जाओ और ऐसी बात खोजकर लाओ जहां एक हाथ की ताली बजती है। अब एक हाथ की ताली! यह झेन फकीरों का अपना ढंग है अनाहत को कहने का। उन्हें अनाहत का कोई पता नहीं है इस शब्द का। वे कहते हैं वह जगह खोजो, वह स्थान खोजो, जहां एक हाथ की ताली बजती है। जहां एक हाथ की ताली बजेगी, वहां ओम् रह जाएगा। जहां तक दो हाथ की ताली बजेगी, वहां तक शब्द होंगे, ध्वनियां होंगी।

मैंने क्यों जानकर ध्यान में ओम् को बिलकुल जगह नहीं दी है? जानकर नहीं दी है। क्योंकि अगर आपने उच्चारण किया ओम् का, तो वह आपके द्वारा पैदा की हुई ध्वनि होगी। वह आहत नाद होगा। मैं प्रतीक्षा करता हूं उस ओम् की जब आप बिलकुल खो जाएंगे और ओम् प्रगट होगा, और आपके भीतर से आएगा। वह हुंकार होगी, वह अनाहत होगा। वह "कॉज्म?िक साउंड' होगी। उस दिन, जैसा कृष्ण कहते हैं, ठीक कहते हैं कि अगर ओम् को तुमने समझा और जाना और जिआ तो आखिरी क्षण में तुम मुझे उपलब्ध हो जाओगे। वह ठीक कहते हैं। लेकिन वह आपके द्वारा कहा गया ओम् नहीं है। मरते वक्त आप अपने ओंठ से ओम्-ओम् कहते रहें, तो बेकार मेहनत करेंगे। शांति से मर सकते थे और अशांति से मरना हो जाएगा।

ओम् आना चाहिए, प्रगट होना चाहिए, विस्फोट होना चाहिए। वैसा होता है।

अब हम ध्यान के लिए बैठे। देखें, उस ओम् की तरफ यात्रा करें।

बातचीत न करें, दूर-दूर बैठ जाएं... ... ...बातचीत न करें, दूर-दूर बैठ जाएं। थोड़ा फासला करके बैठें।... ... ...(जो लोग देखने खड़े हैं वे बाहर आ जाएं, सड़क पर खड़े हों, यहां "कंपाउंड' में खड़े न हों। आप लोग बाहर जाएं।)... ... ...

थोड़े फासले पर बैठें, ताकि कोई गिर जाए, लेट जाए, तो आपके ऊपर न पड़ जाए...काफी पीछे जगह पड़ी है, कंजूसी न करें। थोड़े दूर-दूर हट जाएं। फिर कोई गिर जाएगा उतने ही में बाधा हो जाती है--और कई लोग गिर जाएंगे--इसलिए हट जाएं। और ऐसा मत सोचें कि दूसरा हटेगा, दूसरा कभी हटता ही नहीं। हटना हो तो आप ही हट जाएं।

(जो मित्र देखने खड़े हैं, उनसे प्रार्थना है कि वे बिलकुल चुपचाप खड़े होकर देखेंगे, बात न करेंगे, ताकि हमें बाधा न हो।)

दोत्तीन बात समझ लें। बैठकर प्रयोग करना है, उसी तरह परिणाम होंगे। दस मिनट तो हम गहरी श्वास लेते रहेंगे। दस मिनट के बाद बैठे-बैठे ही शरीर डोलने लगेगा, उसे डुलाना है--डोलने देना है। आवाज निकलने लगेगी, रोना निकलने लगेगा, उसे निकलने देना है। फिर दस मिनट पीछे--"मैं कौन हूं', प्रक्रिया वैसी ही रहेगी, सिर्फ आपको बैठकर करना है, बस इतना फर्क होगा। इस बीच कोई गिर जाएगा तो उसे चिंता नहीं लेनी, गिर जाना है।

("कंपाउंड' में कोई भी आंख खोले हुए नहीं होगा।)

दोनों हाथ जोड़ लें, संकल्प कर लें--

"प्रभु को साक्षी रखकर मैं संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगाऊंगा।'

"प्रभु को साक्षी रखकर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगाऊंगा।'

"प्रभु को साक्षी रखकर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगाऊंगा।'

आप अपने संकल्प का स्मरण रखना, प्रभु आपके संकल्प का स्मरण रखता ही है।

अब दस मिनट के लिए बैठे-बैठे ही तीव्र श्वास लें। इसमें बहुत जोर से शक्ति उठेगी, खड़े होने से भी ज्यादा जोर से उठेगी।... ... ...

...शक्ति उठेगी ही, श्वास की चोट करें। ...शरीर के भीतर विद्युत दौड़ने लगेगी ...शरीर के भीतर "इलेक्ट्रीसिटी' पैदा होने लगेगी... ...जोर से सांस लें... शरीर कंपने लगे, कंपने दें; डोलने लगे, डोलने दें; हिलने लगे, हिलने दें।... ... ...

शक्ति जाग रही है उसे जागने दें, जोर से श्वास लें, शक्ति को जागने दें।... ...

... ...बहुत ठीक, बहुत ठीक, अपना-अपना खयाल कर लें, कोई पीछे न रह जाए... शक्ति जाग रही है, उसे जागने दें... शरीर जो करता हो बैठे-बैठे करने दें... ... ...गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास... शक्ति जाग रही, सहयोग करें, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें... ...

गहरी श्वास...बहुत ठीक, बहुत ठीक...अधिक मित्रों की शक्ति जाग रही है, उसे पूरा खुला छोड़ दें...गहरी श्वास लें, चोट करें, आनंद से भर जाएं, आनंद से भर जाएं, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें, आनंद से भर जाएं, गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें।... ...

शरीर "इलेक्ट्रिफाइड' हो गया है, उसे होने दें, आप गहरी श्वास लें, आनंद से, आनंद से, परिपूर्ण आनंद से भर कर गहरी श्वास लें।... ...

जोर से, जोर से, आनंद से, आनंद से, पूरे आनंद से गहरी श्वास लें; पीछे न रह जाएं, पूरी शक्ति लगाएं, फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे, चार मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं।... ...

बहुत ठीक, बहुत ठीक, ठीक गति आ रही है, आने दें, आने दें, आने दें। कभी-कभी जरा-से में चूक जाते हैं...ताकत, ताकत पूरी लगा दें, आनंद भाव से पूरी ताकत लगा दें।... ...

तीन मिनट बचे हैं...बढ़ें, बढ़ें, बढ़ें, जोर से, भीतर यात्रा करें, गहरी श्वास। शक्ति जागने लगेगी, शरीर अपना नहीं मालूम पड़ेगा, डोलने लगेगा, बैठे-बैठे नाचने लगेगा, डोलने लगेगा, कांपने लगेगा। कांपने दें, बैठे-बैठे नाचने दें, आप गहरी श्वास लें, गहरी श्वास लें...बहुत ठीक, डोलें, डोलें, कंपें...गहरी श्वास लें।... ...

बहुत ठीक, बहुत गति ठीक आ रही है, आनंद से, आनंद से। दो मिनट बचे हैं, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास, गहरी श्वास।...जब मैं कहूं एक, दो, तीन, तो पूरी ताकत लगा दें।...गहरी श्वास, गहरी श्वास, आनंद से भर जाएं, डोलने दें शरीर को, डोलने दें, बैठे-बैठे नाचने दें, कांपने दें।... ...

एक, देखें कोई पीछे न रह जाए। दो...तीन...पूरी ताकत लगा लें, फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे। शक्ति जाग गई है, पूरी ताकत लगा दें, जो पूरी ताकत लगाएगा वह दूसरे में शीघ्रता से गति कर जाएगा। बहुत ठीक, बहुत ठीक, बहुत ठीक, जोर से, जोर से, जोर से।... ...

अब दूसरे चरण में प्रवेश करें, शरीर को जो करना है, करने दें। चिल्लाना है चिल्लाने दें, रोना है रोने दें, डोलना है डोलने दें, हंसना है हंसने दें, आनंद से भर जाएं और शरीर जो कर रहा है उसका सहयोग करें। हंसें, चिल्लाएं, रोएं, डोलें।... ...

जोर से रोएं, हंसें, चिल्लाएं, आनंदित हों। शक्ति जाग गई है, दिल खोल कर हंसें।... ...

जोर से आनंद से भर जाएं, जोर से आनंद से भर जाएं, हंसें, चिल्लाएं, जोर से चिल्लाएं, शरीर को जो हो रहा है होने दें।... ...

सहयोग करें, आनंद से भर जाएं, डोलें, बैठे-बैठे नाचें, कांपें, चिल्लाएं, हंसें, रोएं। संभालें नहीं, जोर से करें, संभालें नहीं।... ...

बहुत ठीक, बहुत ठीक, जोर से, जोर से, जोर से।... ...

दिल खोल कर आनंद से भर जाएं, हंसें, दिल खोल कर हंसें। जोर से, जोर से, पांच मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं। दिल खोल कर चिल्लाएं, पूरी घाटी गूंज जाए।... ...

चार मिनट बचे हैं, पूरी शक्ति लगाएं, हंसें, खिलखिलाएं, रोएं, चिल्लाएं, आनंद से भर जाएं, शरीर जो कर रहा है करने दें।...जोर से, जोर से, चार मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगा दें, शरीर को कंपने दें, डोलने दें, नाचने दें, जो हो रहा है होने दें।... ...

तीन मिनट बचे हैं, पूरी शक्ति लगाएं, फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करें।... ...

दो मिनट बचे हैं, पूरी शक्ति लगाएं, फिर हम तीसरे चरण में प्रवेश करें। जोर से, पूरी घाटी गूंजने लगे। चिल्लाएं, चिल्लाएं, आनंद से चिल्लाएं। आनंद से चिल्लाएं, हंसें, आनंद से चिल्लाएं।... ...

मैं एक, दो, तीन कहूं तब पूरी शक्ति लगाएं। एक, पूरी शक्ति लगा दें। दो, पूरी शक्ति लगा दें, अपने को पूरा खाली कर लें। तीन, पूरी शक्ति लगा दें।...चिल्लाएं, हंसें, जोर से, एक दफा पूरी ताकत लगा दें।...

अब तीसरे चरण में प्रवेश कर जाएं। भीतर पूछें, मैं कौन हूं? डोलते रहें, कांपते रहें, पूछते रहें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? भीतर पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? डोलते रहें, डोलते रहें, कांपते रहें, नाचते रहें, पूछें, मैं कौन हूं? कोई फिकर नहीं आवाज बाहर निकल जाए, पूछें जोर से, मैं कौन हूं?...

नाचते रहें, नाचते रहें, पूछें, मैं कौन हूं? आनंद से पूछें, मैं कौन हूं? पूरे आनंद से पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? दस मिनट में मन को बिलकुल थका डालना है। जोर से पूछना हो जोर से पूछें, मैं कौन हूं?... ...

मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें, पूछें, धीमे नहीं, शक्ति से पूछें, मैं कौन हूं? आनंद से पूछें, मैं कौन हूं?...डोलें, नाचें, कांपें, जोर से पूछें, मैं कौन हूं?... ...

पूछें, पूछें, बाहर भी आवाज निकले फिकर न करें। पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...थका डालना है। पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें, पूछें, डोलें, नाचें, कंपें; पूछें, मैं कौन हूं? थका डालना है मन को, बिलकुल थका डालना है। पूछें, मैं कौन हूं?...

जोर से, जोर से, ताकत लगाएं, पूछें परमात्मा से, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...

मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पांच मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं, फिर हम आखिरी चरण में प्रवेश करेंगे। थका डालें, बिलकुल थका डालें, चिल्लाएं जोर से, मैं कौन हूं? चिल्लाएं, चिल्लाएं जोर से, मैं कौन हूं? चिल्लाएं, चिल्लाएं जोर से, मैं कौन हूं?... ...

चार मिनट बचे हैं, पूछें, पूछें, पूछें, पीछे न रह जाएं--बहुत ठीक, पूछें मैं कौन हूं? चिल्लाएं जोर से, पूछें, मैं कौन हूं?... ...

बहुत ठीक, बहुत ठीक, तीन मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगाएं, आनंद से पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूरी तरह कूद जाएं, पूछें, मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?... ...

दो मिनट बचे हैं, अब पूरी ताकत लगा दें। पूछें जोर से, मैं कौन हूं?... ...

मैं कौन हूं? एक, पूरी ताकत लगाएं। दो, मैं कौन हूं? पूरी ताकत लगाएं। तीन, पूरी ताकत लगाएं, मैं कौन हूं? जोर से पूछें, कुछ सेकेंड के लिए पूरी ताकत लगा दें। बिलकुल पागल हो जाएं। जोर से पूछें, मैं कौन हूं? जोर से, कुछ सेकेंड के लिए पूरी ताकत लगा दें। चीखें, जोर से चिल्लाएं, मैं कौन हूं?...जोर से, जोर से, जोर से।... ...

बस अब आखिरी चरण में प्रवेश कर जाएं, शांत हो जाएं, अब सब छोड़ दें। पूछना छोड़ दें, पूछना छोड़ दें। कंपना छोड़ दें, गहरी श्वास लेना छोड़ दें। जो जहां है वैसा ही रह जाए। कोई गिर गया गिरा हुआ, कोई बैठा है बैठा हुआ, जो जैसा है वैसा ही रह जाए। दस मिनट के लिए परिपूर्ण मौन में प्रवेश कर जाएं। जैसे बूंद सागर में खो जाए ऐसे खो जाएं। सब शून्य हो गया, सब मौन हो गया। जैसे हम मर ही गए।

दस मिनट के लिए बिलकुल खो जाएं, न हो जाएं। इस न होने में ही उसका पता चलता है जो है। चारों तरफ वही है, काश हम शून्य हो जाएं तो वह हमारे भीतर प्रवेश कर जाता है। जैसे मिट ही गए, जैसे समाप्त हो गए। परमात्मा ही शेष रह गया है, हम समाप्त हो गए।... ...

प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया है, हम समाप्त हो गए हैं। आनंद ही आनंद शेष रह गया है, हम समाप्त हो गए हैं। देखें भीतर प्रकाश ही प्रकाश अनंत प्रकाश है, देखें भीतर आनंद की वर्षा हो रही है। रोएं-रोएं में, पुलक-पुलक में आनंद भर गया है। परमात्मा के अतिरिक्त और कोई भी नहीं है। परमात्मा के अतिरिक्त और कोई भी नहीं है, वही है चारों ओर, वही है बाहर, वही है भीतर। पहचानें, स्मरण करें, पहचानें, स्मरण करें।... ...

स्मरण करें, स्मरण करें, वही है बाहर, वही है भीतर, वह दीवाल गिर गई जो बाहर और भीतर को अलग करती थी। सब एक हो गया, बूंद सागर में खो गई।...बूंद सागर में गिर गई, खो गई, समाप्त हो गई। परमात्मा ही शेष रह गया। परमात्मा ही शेष रह गया, परमात्मा ही शेष रह गया। वही है बाहर, वही है भीतर, वही है सब ओर, पहचानें, स्मरण करें, पहचानें।...

वही है, वही है, वही है, स्मरण करें। बीच की दीवाल गिर गई, उससे हम एक हो गए, वह हमसे एक हो गया है। आनंद ही आनंद, अमृत ही अमृत, प्रकाश ही प्रकाश है।... ...

डूब जाएं, डूब जाएं, खो जाएं, खो जाएं, स्मरण करें वही है, अपने को छोड़ दें, मिट जाएं। आनंद ही आनंद, प्रकाश ही प्रकाश, परमात्मा ही परमात्मा शेष रह जाता है। प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया। आनंद रोएं-रोएं में भर गया। पहचानें, स्मरण करें, स्मरण करें।... ...

स्मरण करें, स्मरण करें, स्मरण करें, पहचानें।...यही है वह क्षण, जब दर्शन हो सकता है। यही है वह क्षण, जब मिलन हो सकता है। यही है वह क्षण, जब उसके मंदिर में प्रवेश हो सकता है। द्वार पर खड़े हैं, पहचानें, प्रकाश ही प्रकाश, आनंद ही आनंद, शांति ही शांति रह गई है। परमात्मा ही है, चारों ओर वही है, वृक्षों में, आकाश में, हवाओं में, बाहर-भीतर, उसके अतिरिक्त और कोई भी नहीं है। स्मरण करें, स्मरण करें।... ...

अब दोनों हाथ जोड़ लें और उसे धन्यवाद दे दें, उसकी अनुकंपा अपार है। दोनों हाथ जोड़ लें, सिर झुका लें, उसे धन्यवाद दे दें, उसके अज्ञात चरणों में समर्पित हो जाएं। दोनों हाथ जोड़ लें, सिर झुका लें, उसके चरणों पर सिर रख दें। उसकी अनुकंपा अपार है। उसकी अनुकंपा अपार है। उसकी अनुकंपा में नहा जाएं। दोनों हाथ जोड़ लें, सिर झुका लें, धन्यवाद दे दें। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है।... ...

प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है।... ...

उसकी अनुकंपा अपार है। उसकी अनुकंपा अपार है। उसकी अनुकंपा अपार है। अब दोनों हाथ छोड़ दें। धीरे-धीरे आंख खोल लें, ध्यान से वापस लौट आएं। जिनसे आंख न खुले, वे दोनों हाथ आंख पर रख लें। जिनसे उठते न बने, वे दो-चार गहरी श्वास लें और धीरे-धीरे उठ आएं।

ध्यान से वापस लौट आएं। दो-चार गहरी श्वास ले लें। उठते न बने, दो-चार गहरी श्वास लें फिर धीरे-धीरे उठ आएं। आंख न खुलती हो तो दोनों हाथ आंख पर रख लें और आंख खोल लें। ध्यान से वापस लौट आएं।

ओशो रजनीश



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